नई दिल्ली: पाकिस्तान ने 1971 में बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में जमकर खून बहाया था। वहीं, बांग्लादेश को स्वतंत्र कराने के लिए भारत पूरा सहयोग कर रहा था। पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश में बंगाली राष्ट्रवादी और हिंदुओं का कत्लेआम किया था। बांग्लादेश में कई स्थानों पर सामूहिक नरसंहार तक को अंजाम दिया गया था, जिसमे से एक शेरपुर के सोहागपुर गांव का नरसंहार भी शामिल है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, 25 जुलाई 1971 की रात को पाकिस्तानी फ़ौज ने बांग्लादेश के शेरपुर के सोहागपुर गांव में हिन्दुओं का जमकर खून बहाया था। उन्होंने 164 पुरुषों की हत्या कर डाली थी और एक ही रात में 57 महिलाओं का बलात्कार किया गया था। इसमें कुछ स्थानीय लोगों ने भी पाकिस्तानी सेना का सहयोग किया था। इस कत्लेआम के बाद सोहागपुर गांव में पुरुष ही नहीं बचे थे। बीते 51 सालों से इस गांव को विधवाओं के गांव के रूप में जाना जाता है।
सोहागपुर गांव में आज भी 50 से ज्यादा महिलाएं पाकिस्तानी सेना के क्रूर नरसंहार की जिन्दा गवाह हैं। सोहागपुर में लोगों का जीवन शांति से चल रहा था, मगर उस रात पाकिस्तानी फ़ौज की हैवानियत ने पूरे गांव को बर्बाद कर दिया। बम और गोलियों की बौछार में पूरा गांव बह गया। गांव के 164 पुरुषों के नृशंस क़त्ल के बाद महिलाओं के साथ भी हैवानियत की और फिर पीड़ितों की चीख और आवाज को भी दबा दिया गया।
उन विधवाओं के दिल में वह डरावनी यादें आज भी जीवित हैं, जिसका आघात वह कई सालों से सहन कर रही हैं। हालांकि वर्ष 2014 को उन्हें कुछ राहत उस समय मिली, जब अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने उनके गुनाहगारों में से एक, केवल एक को मौत की सजा सुनाई। सत्तारूढ़ अवामी लीग (AL) ने युद्ध अपराधियों पर केस चलाने के लिए अपनी चुनावी प्रतिज्ञा के तहत न्यायाधिकरण की स्थापना की। एक महिला ने अपना नाम न बताने की शर्त पर अदालत के समक्ष उस भयावह रात की दास्तां सुनाई, जब उसकी आंखों के सामने उसके पति की हत्या कर दी गई थी।
एक अन्य चश्मदीद ने भी अपनी आपबीती बताई कि कैसे वह अपनी जान बचाने के लिए भागा। हिंसा के बाद जब वह घर लौटा, तो उसे वहां अपने पिता सहित 11 लोगों के शव पड़े हुए मिले। घटना को याद करते हुए वह फूट-फूटकर रोने लगा और उसने अपने पिता और रिश्तेदारों के कातिलों को फांसी की सजा देने की मांग की।
इस कत्लेआम को अंजाम देने के लिए पाकिस्तानी फ़ौज को स्थानीय लोगों द्वारा मदद दी गई थी। उनमें से एक विवादास्पद इस्लामवादी पार्टी जमात के नेता कमरुज्जमां और उनके साथी शामिल थे। पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर अपने नापाक इरादों को अंजाम देने के बावजूद ये लोग बांग्लादेश के आजाद होने के बाद भी लगभग 40 तक आराम से बांग्लादेश में ही ऐश करते रहे। 15 अगस्त 1975 को बांग्लादेशी सेना के कुछ जूनियर बागी अधिकारियों ने राष्ट्रपति भवन (शेख मुजीबुर रहमान का आवास) पर टैंक से हमला कर दिया। इस हमले में शेख मुजीबुर रहमान परिवार के 19 सदस्यों के साथ मारे गए थे। इस घटना को अंतरराष्ट्रीय साजिश कहा गया।
देश के पहले सैन्य तानाशाह जनरल जियाउर्रहमान ने इन अपराधियों को सजा दिलाने की जगह इनके सियासी रसूख को मजबूत करने में सहयोग किया। यहां तक कि उनकी निगरानी में ऐसे मामलों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। जो शायद कमरुज्जमां जैसे सैकड़ों युद्ध अपराधियों के लिए सबसे बड़ा प्रोत्साहन था। वहीं, सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए जनरल जियाउर्रहमान द्वारा बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) का गठन एक प्रमुख कदम भी था।
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