नई दिल्ली: दक्षिण में कांग्रेस का वर्चस्व तोड़ने में अहम भूमिका निभाने वाले अनंत कुमार भाजपा को अनंत समय तक याद आएंगे, 1990 के दशक में केंद्र समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में सत्ता हासिल करने वाली भाजपा की चिंता उस समय दक्षिण के राज्य ही थे. दरअसल, यह वह दौर था जब भाजपा दक्षिण में अपने विस्तार के लिए आतुर थी, ऐसे में कर्नाटक में अनंत कुमार ने यहां की कमान संभाली और भाजपा का सफल नेतृत्व किया. वह उन प्रमुख नेताओं में थे, जिन्होंने दक्षिण के राज्यों को भाजपा के लिए उर्वर बनाया, बता दें कि फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित अनंत कुमार का आज तड़के निधन हो गया है. वह पिछले दो हफ़्ते पहले ही लंदन से इलाज कराकर बंगलुरु लौटे थे.
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आपातकाल के दौरान जनसंघ के दिग्गज नेताओं ने जब उत्तर भारत में विरोध की कमान संभाल रखे थे, उस समय कर्नाटक में इस युवा छात्र ने तत्कालीन इंदिरा सरकार के विरोध में आवाज़ बुलंद कर रखी थी. अनंत कुमार उस वक्त छात्र राजनीति में थे, वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में थे, आपात के दौरान वह तमाम छात्रों के साथ उन्होंने जेल में एक महीना काटा.
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छात्र राजनीति के बाद 1987 में वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए, यह वो वक्त था, जब भाजपा सत्ता प्राप्ति के लिए सभी यत्न कर रही थी. ऐसे समय कर्नाटक में अपनी सियासी पारी की शुरुआत की, कर्नाटक में भाजपा के प्रचार-प्रसार में उनका योगदान अतुलनीय रहा. अपने आर्कषक व्यक्तित्व व प्रखरता के कारण उन्होंने जल्द ही भाजपा में अपना एक अलग पहचान बना ली, यही कारण है कि 1998 में जब केंद्र में भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी तो वे सबसे कम उम्र के केंद्रीय मंत्री बने.
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