नई दिल्ली: बालाजी बाजीराव (जन्म- 8 दिसम्बर, 1721 ई।; मृत्यु- 23 जून, 1761 ई।) बाजीराव प्रथम के ज्येष्ठ पुत्र थे। वह पिता के देहांत के बाद पेशवा बने थे। बालाजी विश्वनाथ के वक़्त में ही पेशवा का पद पैतृक बन गया था। 1750 ई। हुई 'संगोली संधि' के बाद पेशवा के हाथ में सारे अधिकार सुरक्षित हो चुके थे।
अब 'छत्रपति' (राजा का पद) महज दिखावे भर का रह गया था। बालाजी बाजीराव ने मराठा ताकत का उत्तर तथा दक्षिण भारत, दोनों तरफ विस्तार किया। इस तरह उनके समय कटक से अटक तक मराठा साम्रज्य का विस्तार हो चुका था। बालाजी ने मालवा और बुन्देलखण्ड में मराठों के अधिकार को बरकरार रखते हुए तंजौर प्रदेश को भी जीत लिया था। बालाजी बाजीराव ने हैदराबाद के निज़ाम को एक जंग में पराजित कर 1752 ई। में 'भलकी की संधि' की, जिसके तहत निज़ाम ने बरार का आधा हिस्सा मराठों को दे दिया।
बंगाल पर किये गये आक्रमण के परिणामस्वरूप अलीवर्दी ख़ाँ को मजबूर होकर उड़ीसा से भागना पड़ा और बंगाल तथा बिहार से चौथ के रूप में 12 लाख रुपया सालाना देना स्वीकार करना पड़ा। 1760 ई। में उदगिरि के युद्ध में निज़ाम ने करारी शिकस्त खाई। मराठों ने 60 लाख रुपये वार्षिक कर का प्रदेश, जिसमें अहमदनगर, दौलताबाद, बुरहानपुर तथा बीजापुर नगर सम्मिलित थे, हासिल कर लिया।
बालाजी बाजीराव के दौरान ही अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण हुआ, जिसमें मराठे बुरी तरह पराजित हुए। इससे पहले बालाजी के समय मुग़ल साम्राज्य की जगह पर हिन्दू राज्य की स्थापना के लिए स्थिति अनुकूल थी। लेकिन, भारत पर बाहरी आक्रमण लगातार हो रहे थे। पेशवा बालाजी बाजीराव ने सेनापति सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में एक बड़ी सेना अब्दाली को रोकने के लिए भेजी। पेशवाओं ने अभी तक उत्तर भारत में जितनी भी सेनाएँ भेजी थीं, उनसे यह सबसे बड़ी थी।
मराठों ने दिल्ली पर नियंत्रण तो कर लिया, पर वह उनके लिए मरुभूमि साबित हुई, क्योंकि वहाँ इतनी बड़ी सेना के लिए रसद मुहैया नहीं थी। अत: वे पानीपत की ओर बढ़ गए। 14 जनवरी, 1761 ई। को अहमदशाह अब्दाली के साथ पानीपत का तीसरी भाग्य निर्णायक लड़ाई हुई। मराठे बुरी तरह से पराजित हुए। पेशवा का युवा पुत्र विश्वासराव, जो कि नाममात्र का सेनापति था, भाऊ, जो वास्तव में सेना की क़मान सम्भाल रहा था तथा अनेक मराठा सेनानी मैदान में खेत रहे। उनकी घुड़सवार और पैदल सेना के हज़ारों जवान शहीद हो गये। वास्तव में पानीपत का तीसरा युद्ध समूचे भारत के लिए भयंकर वज्रपात साबित हुआ। पेशवा बालाजी बाजीराव की, जो भोग-विलास के चलते पहले ही असाध्य रोग से ग्रस्त हो गया था, 23 जून, 1761 ई। में मृत्यु हो गई।
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