नई दिल्ली: आज मैसूर के राजा टीपू सुल्तान का जन्म वैसे तो 1 दिसंबर 1751 को हुआ था, लेकिन भारत में कांग्रेस सरकार द्वारा 20 नवंबर को टीपू सुल्तान की जयंती घोषित किया गया है। इसके बाद से हर साल 20 नवंबर के ही दिन टीपू सुल्तान की जयंती मनाई जाती है। साथ ही यह बहस भी शुरू हो जाती है कि, टीपू एक स्वतंत्रता सेनानी था या फिर एक धर्मांध शासक, जिसने गैर-मुस्लिमों का जमकर खून बहाया।
दरअसल, भारत में हमेशा टीपू सुलतान की जयंती मनाने को लेकर विवाद होता रहता है, जहाँ कांग्रेस और वामपंथी दल, टीपू को स्वतंत्रता सेनानी बताते हुए उनकी जयंती मनाने के पक्ष में रहते हैं, वहीं भाजपा-शिवसेना उन्हें सिर्फ अपने मजहब के लिए लड़ने वाला और हिन्दुओं पर अत्याचार करने वाला क्रूर शासक बताती है। इतिहास में भी भाजपा-शिवसेना की थ्योरी को सच साबित करने वाले तथ्य मिलते हैं। जैसे इन शब्दों को ही देख लीजिए:-
'आप लोगों को कुर्गों पर आक्रमण करना है। फिर औरतों, बच्चों सबके सामने तलवार रख सबको मुसलमान बनाना है। इसके लिए चाहे उनको बंदी बनाना पड़े या हत्या करनी पड़े, दस साल पहले इस जिले के 10-15 हज़ार लोगों को पेड़ पर टांग दिया गया था। तब से ये पेड़ अभी भी इंतजार कर रहे हैं।' - ये अंश उस चिट्ठी के हैं, जो टीपू सुल्तान ने अपने कमांडर को लिखी थी। इसका जिक्र खुद टीपू सुल्तान के दरबारी इतिहासकार मीर हुसैन किरमानी ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ़ टीपू सुल्तान' में किया है।
हालाँकि, ये बात सत्य है कि अंग्रेजों से लड़ने में टीपू ने काफी बहादुरी दिखाई थी। लेकिन इसके साथ ही वो मराठा, निज़ाम, ट्रावनकोर के राजा, कुर्ग सबको दबाना चाहता था। इसके लिए उसने क्रूरता करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। उसके पिता हैदर अली ने वाड्यार वंश से सत्ता हथिया ली थी। हैदर की मौत के बाद 1782 में टीपू मैसूर का राजा बना था। शासक बनने के बाद ही टीपू की क्रूरता शुरू हो गई थी, 1788 में टीपू सुल्तान ने एक बड़ी सेना केरल में हमला करने के लिए भेज दी। मशहूर कालीकट शहर को ध्वस्त कर दिया गया। सैकड़ों मंदिरों और चर्चों को चुन-चुन के ढहाया गया। हजारों हिन्दुओं और क्रिश्चियनों को तलवार के बल पर मुसलमान बना दिया गया। जो लोग नहीं माने, उनकी हत्या कर दी गई।
वहीं, कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए टीपू सुल्तान के स्वतंत्रता सेनानी होने पर सवाल उठाए थे। कोर्ट का कहना था कि टीपू सुल्तान स्वतंत्रता सेनानी नहीं था, बल्कि एक सम्राट था जिसने अपने हितों की रक्षा के लिए युद्ध किया। कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एसके मुखर्जी की बेंच ने कहा कि, टीपू जयंती मनाने के पीछे क्या तर्क है? टीपू स्वतंत्रता सेनानी नहीं, बल्कि एक सम्राट था जिसने अपने हितों की रक्षा के लिए विरोधियों से जंग लड़ी थी।
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