नई दिल्ली: भारत के इतिहास में महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 गुजरात के टंकारा में हुआ था। स्वामी दयानन्द सरस्वती को आधुनिक भारत के महान चिन्तक और समाज-सुधारक के साथ ही एक देशभक्त के रूप में भी पहचाना जाता है। इनके बचपन का नाम मूलशंकर था और उन्होने 1874 में एक आर्य सुधारक संगठन-आर्य समाज की स्थापना की थी। स्वामी जी ने 30 अक्टूबर 1883 को अजमेर में देहत्याग किया था।
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की है। यहां बता दें कि वे एक संन्यासी तथा एक महान चिंतक थे और उन्होने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना है। स्वामी जी ने कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया। उन्होने ही सबसे पहले 1876 में स्वराज का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। स्वामी दयानन्द सरस्वती के विचारों से प्रभावित महापुरुषों की संख्या असंख्य है, इनमें प्रमुख नाम हैं- मादाम भिकाजी कामा, पण्डित लेखराम आर्य, स्वामी श्रद्धानन्द, पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी, श्यामजी कृष्ण वर्मा, विनायक दामोदर सावरकर, लाला हरदयाल, मदनलाल ढींगरा, राम प्रसाद बिस्मिल, महादेव गोविंद रानडे, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय इत्यादि शामिल हैं।
दयानन्द सरस्वती के प्रमुख अनुयायियों में लाला हंसराज ने 1886 में लाहौर में 'दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज' की स्थापना की तथा स्वामी श्रद्धानन्द ने 1901 में हरिद्वार के निकट कांगड़ी में गुरुकुल की स्थापना की थी। स्वामी जी प्रचलित धर्मों में व्याप्त बुराइयों का कड़ा खण्डन करते थे चाहे वह सनातन धर्म हो या इस्लाम हो या ईसाई धर्म हो। अपने महाग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में स्वामी जी ने सभी मतों में व्याप्त बुराइयों का खण्डन किया है।
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