नई दिल्ली: जेपी आंदोलन के नायक रहे जयप्रकाश नारायण की आज पुण्यतिथि है। उनकी अगुआई में शुरू हुए जेपी आंदोलन ने केंद्र में बैठी इंदिरा गांधी की गद्दी तक हिला दी थी। इस आंदोलन की शुरुआत बिहार से हुई थी। आंदोलन का हिस्सा रहे समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी बताते हैं कि जिस समय देश में जेपी का आंदोलन शुरू हुआ, उस समय पूरे विश्व में छात्रों के आंदोलन चल रहे थे। बिहार में शुरू हुए इस आंदोलन की पृष्ठ भूमि गुजरात से जुड़ी हुई है। दरअसल, वहां के इंजीनियरिंग कॉलेज में मेस की फीस बढ़ा दी गई थी, जिसका छात्रों ने विरोध किया। ये आंदोलन इतना व्यापक हुआ कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार को त्यागपत्र तक देना पड़ा। इसे देखते हुए बिहार में भी छात्रों की सभा का आयोजन तब के छात्र संघ के प्रमुख लालू यादव के द्वारा पटना यूनिवर्सिटी में आयोजित किया गया। इसमें बिहार की जनता और छात्रों की समस्या को लेकर सरकार को घेरने की योजना बनाई गई।
समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी उस समय को याद कर कहते हैं कि 18 मार्च 1974 को बिहार विधानसभा के बजट सत्र का पहला दिन था। इसी दिन छात्रों ने बिहार विधानसभा का घेराव करने के लिए मार्च निकाला। इस समय तक आंदोलन का नाम जेपी आंदोलन नहीं था, छात्र आंदोलन था। छात्रों का ये मार्च हिंसक हो गया। सर्चलाइट प्रेस, नूतन पटना नगर निगम, राजस्थान होटल आदि में आग लगा दी गई। कई जगह फायरिंग हुई, कई लोग इस गोलीकांड में जख्मी हुए। कई लोगों ने अपनी जान गवाई। बाद में, छात्र युवा नौजवानों ने ये देखा कि आंदोलन अब उनसे चलने वाला नहीं, तो जयप्रकाश नारायण से इसका नेतृत्व करने का अनुरोध किया गया। जयप्रकाश नारायण वेल्लूर से उपचार कराकर पटना आए थे। सभी छात्र नेता उनसे मिलने पहुंचे।
उन्होंने जेपी से आग्रह किया कि वो इस छात्र आंदोलन की अगुवाई करें। चूकि, ये आंदोलन पहले हिंसक हो चुका था, ऐसे में जेपी ने सबसे पहले आंदोलन की अगुवाई के बदले दो शर्त रख दी। पहली शर्त थी- आंदोलन अहिंसक होगा। दूसरी शर्त के अनुसार, राय-सलाह सबकी होगी लेकिन जो वो कहेंगे सभी उनकी बात मानेंगे। सभी ने जेपी को अपना समर्थन दिया। यहां से छात्रों का आंदोलन जेपी आंदोलन बन गया।
आंदोलन का नेतृत्व अपने हाथ में लेने के बाद सबसे पहले जेपी ने मौन जुलूस निकाला। इस जुलूस में सभी के हाथ पीछे थे। मुंह पर पट्टी बंधी थी। इसमें दिनकर और फणीश्वर नाथ रेणु सहित उस वक्त के कई चिंतक और विचारक शामिल हुए थे। इस जुलूस में लोगों की तादाद सीमित थी, लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे पूरा पटना शामिल हो।
जेपी के इस आंदोलन से इंदिरा गांधी के नीचे से सत्ता की जमीन खिसकने लगी और बाद में इंदिरा गांधी को इस कदर विरोध झेलना पड़ा कि उनके हाथ में सत्ता अधिक समय नहीं बची। जयप्रकाश नारायण ने आजादी के बाद ही नहीं, उससे पहले भी गांधी के साथ भारत छोड़ो जैसे आंदोलनों को कामयाब बनाया था।
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