आज हिंदी के महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की पुण्यतिथि है। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' हिंदी कविता के छायावाद के सबसे प्रमुख स्तंभ भी कहा जाता है। खड़ी बोली हिंदी में लिखी कविता को साहित्यिक प्रतिष्ठा दिलाने का श्रेय छायावाद को ही जाता है। इसमें भी सबसे प्रमुख योगदान महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का भी कहा जा रहा है। भाव और भाषा के स्तर पर जितने प्रयोग निराला ने किए हैं उतने प्रयोग छायावाद के किसी अन्य कवि ने नहीं किए हैं। निराला के यहां एक ओर जहां 'विद्धांग-बद्ध-कोदंड-मुष्टि-खर-रुधिर-स्राव' जैसी आसानी से नहीं समझ में आने वाली पंक्तियां भी मिल जाती है, वहीं दूसरी ओर 'अबे सुन बे गुलाब', 'बांधों न नाव इस ठांव बंधु', 'वह तोड़ती पत्थर/ देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर' जैसी कविताएं भी मिलती हैं। निराला के यहां उर्दू ग़ज़लों की शैली से लेकर शास्त्रीय और लोकगीतों की शैली भी देखने के लिए मिली है। आज हम आपके लिए कविताकोश के साभार से लेकर आए हैं सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की कविताएं।।।
1 । स्नेह-निर्झर बह गया है !
रेत ज्यों तन रह गया है ।
आम की यह डाल जो सूखी दिखी,
कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी
नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
नहीं जिसका अर्थ-
जीवन दह गया है ।"
दिये हैं मैने जगत को फूल-फल,
किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल;
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल--
ठाट जीवन का वही
जो ढह गया है ।"
अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,
श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा ।
बह रही है हृदय पर केवल अमा;
मै अलक्षित हूँ; यही
कवि कह गया है ।
2। बदलीं जो उनकी आँखें, इरादा बदल गया।
गुल जैसे चमचमाया कि बुलबुल मसल गया।
यह टहनी से हवा की छेड़छाड़ थी, मगर
खिलकर सुगन्ध से किसी का दिल बहल गया।
ख़ामोश फ़तह पाने को रोका नहीं रुका,
मुश्किल मुकाम, ज़िन्दगी का जब सहल गया।
मैंने कला की पाटी ली है शेर के लिए,
दुनिया के गोलन्दाजों को देखा, दहल गया।
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