जो बरसों तक सड़े जेल में, उनकी याद करें।
जो फाँसी पर चढ़े खेल में, उनकी याद करें।
याद करें काला पानी को,
अंग्रेजों की मनमानी को,
कोल्हू में जुट तेल पेरते,
सावरकर से बलिदानी को। ~ पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी
विनायक दामोदर सावरकर यानि वीर सावरकर, जिनकी वीरता को महज कागज़ एक टुकड़े से ढकने का हमेशा प्रयास किया गया। आज इसी महापुरुष की पुण्यतिथि है। गिरते स्वास्थ के चलते उन्होंने 1 फ़रवरी 1966 को मृत्युपर्यन्त उपवास करने का निर्णय लिया था। 26 दिनों के उपवास के उपरांत 26 फरवरी 1966 को बम्बई में भारतीय समयानुसार प्रातः 10 बजे उन्होंने पार्थिव शरीर छोड़कर परमधाम को प्रस्थान किया। वीर सावरकर वो महापुरुष हैं, जिन्होंने मां भारती की स्तुति में 6000 कविताएं लिखी हैं, वो भी काग़ज़ पर कलम से नहीं, बल्कि सेल्युलर जेल की दीवारों पर, कंकरों, कीलों और कोयलों से। अंग्रेज़ उनकी देशभक्त से ओतप्रोत कविताओं को मिटा न दें और फिर उनके पास अपने देशवासियों में राष्ट्रभक्ति की ज्वाला भरने के लिए शब्द न कम पड़ जाएं, इसलिए सावरकर ने इन्हें रट-रट कर कंठस्थ कर लिया था। सावरकर पूरी दुनिया के एकमात्र ऐसे रचनाकार हैं जिनकी पुस्तक '1857 का स्वातंत्र्य समर' को अंग्रेजों ने प्रकाशन से पहले ही बैन कर दिया था। ये वो पुस्तक हैं, जिसके जरिए वीर सावरकर ने साबित कर दिया था कि 1857 की जिस क्रांति को अंग्रेज, सिपाही विद्रोह बताते रहे हैं, वो भारत का 'प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ था। जब अंग्रेज़ों ने इस किताब को प्रकाशित नहीं होने दिया, तो वीर सावरकर और उनके साथियों ने इसे अपने हाथों लिख-लिखकर क्रांतिकारियों में बांटना शुरू किया। आपको ये जानकार हैरानी होगी कि, चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे कई अमर बलिदानियों ने सावरकर की उस किताब से प्रेरणा ली थी।
This is the jute dress that Savarkar had to wear in cellular jail. Given the humidity near sea, jute bytes your skin every second. He was kept in solitary confinement & Made to grind 100 kg of Copra manually. All this for India's freedom. Pranams to him on his death anniversary. pic.twitter.com/Qd0JLckdHp
— Aviral Sharma (@sharmaAvl) February 26, 2023
वीर सावरकर वही क्रांतिवीर हैं जिन्हें अंग्रेज-सरकार ने क्रांति के अपराध में दोहरे काला-पानी की सजा देकर 50 वर्षों के लिए अंडमान की सेलुलर जेल में डाल दिया था। जहाँ वे दिन भर कोल्हू में बैल की तरह जुटकर तेल पेरते और रात के अंधेरे में राष्ट्रभक्ति की मशाल जलाकर कविताओं की रचना करते। 10 वर्षों के बाद जब सावरकर काला-पानी की हृदय विदारक यातनाएं सहकर जेल से बाहर आए, उसके बाद से ही हमारे देश के कुछ बुद्धिजीवी उनके कृतित्व को भूलकर उन पर अंग्रेज़ों से माफ़ी मांगने का इल्जाम लगाते रहे हैं। यदि स्पष्ट शब्दों में काह जाए, तो सावरकर ने अंग्रेजों से कोई माफ़ी नहीं मांगी थी, यह उनकी रणनीति का एक हिस्सा था। जरा सोचिए, जिस व्यक्ति ने दस वर्षों तक सेलुलर जेल की अमानवीय यातनाएं सही हों, उसको लेकर ‘माफीनामा’ या ‘दया याचिका' की बात करना, क्या हैरान करने वाला नहीं है ?
दरअसल, आज तक राजनेताओं द्वारा हमें सावरकर के जिस माफीनामे के बारे में बताया जाता रहा है, वह महज एक सामान्य सी याचिका थी, जिसे दाखिल करना सियासी कैदियों के लिए एक आम कानूनी विधान था। पारिख घोष जो कि महान क्रांतिकारी अरविंद घोष के भाई थे, सचिन्द्र नाथ सान्याल, जिन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (HRA) का गठन किया था, इन सभी क्रांतिकारियों भी ऐसी ही याचिकाए दाखिल की थी और इनकी याचिकाए मंजूर भी की गई थी। दरअसल, प्रथम विश्व युद्ध के बाद जब पूरी दुनिया में राजनीतिक कैदियों को अपने बचाव के लिए इस तरह की सुविधाएं दी गई थीं, उस समय जॉर्ज पंचम भारत यात्रा पर आए थे। सावरकर ने अपनी आत्मकथा में खुद इसका जिक्र भी किया है, वे लिखते हैं कि, ‘जब-जब सरकार ने सहूलियत दी, तब-तब मैंने याचिका दायर की।' उन्होंने अपने छोटे भाई नारायण राव को जो पत्र लिखे, उनमें भी अपनी याचिका का जिक्र किया है, उन्होंने कभी इस बात को कुछ छुपाया नहीं, क्योंकि इसमें छुपाने जैसा कुछ था ही नहीं।
Mahatma Gandhi on Veer Savarkar. Something the Congress wouldn't like to read & if they do, they'll disown Gandhi. pic.twitter.com/VWpV3IUT7E
— Truth by IBTL (@ibtlx) January 10, 2017
वीर सावरकर द्वारा याचिका दाखिल करने के पीछे मंशा ये थी कि, कहीं वो भारत माता की स्वतंत्रता के दिव्य यज्ञ में आहुति डालने का कोई अवसर चूक न जाएं। कहीं ऐसा न हो कि उनका कालापानी की चार दीवारी के पीछे ही फंसकर ख़त्म हो जाए और भारतीय स्वतंत्रता का उनका महालक्ष्य अधूरा रह जाए। यहाँ तक कि, महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी जैसे राजनेताओं ने भी वीर सावरकर की देशभक्ति का लोहा माना है। महात्मा गांधी ने 1920-21 में अपने पत्र ‘यंग इंडिया’ में वीर सावरकर के समर्थन में लिखे एक लेख में कहा था कि सावरकर को चाहिए कि वे अपनी मुक्ति के लिए सरकार को याचिका भेजें, इसमें कुछ भी गलत नहीं है, क्योंकि स्वतंत्रता व्यक्ति का प्राकृतिक अधिकार है। और इसके बाद वीर सावरकर द्वारा याचिका भेजने के बाद उन्हें 1921 में 10 साल की सजा काटने के बाद सेलुलर जेल से रिहा कर दिया गया था।
Indira Gandhi’s letter referring to #VeerSavarkar as ‘remarkable son of #India.'#IndiraGandhi had also issued a commemorative stamp in Veer Savarkar's honour and had also given private donation of Rs 11,000 to his memorial fund i.e. Swatantrayaveer Savarkar Rashtriya Smarak. pic.twitter.com/A4vvxknIrL
— Jay Thakor ???? (@Jay_Thakor_) February 26, 2023
वहीं, इंदिरा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम में वीर सावरकर के योगदान को देखते हुए उन्हें REMARKABLE SON OF INDIA कहा था। 1980 में एक पत्र में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने पत्र में लिखा था कि, 'ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में वीर सावरकर का अपना महत्व है। मैं भारत के इस उल्लेखनीय सपूत की जन्म शताब्दी मनाने की योजनाओं की सफलता की कामना करती हूं।'
वीर सावरकर की आज पुण्यतिथि है... उन्हें गांधी हत्याकांड में फंसाने की कोशिश हुई थी... आखिर वीर सावरकर किसकी साज़िश के शिकार बने थे? इस बारे में मैंने अपनी पुस्तक हे राम में विस्तार से वर्णन किया है... पेश है पुस्तक के अंश#VeerSavarkar#HeyRam pic.twitter.com/O7PH9ur0hh
— Prakhar Shrivastava (@Prakharshri78) February 26, 2023
अब सवाल ये है कि, वीर सावरकर की इस ‘भारत भक्ति’ के बदले में हमने उन्हें क्या दिया? महात्मा गांधी की हत्या का दोष, जबकि कोर्ट ने उन्हें कब का बाइज़्ज़त बरी कर दिया था। फिर हम उनपर माफीवीर होने का आरोप लगाने लगे। आज तक हम कुछ राजनेताओं के बहकावे में आकर अपने 'राष्ट्रनायकों' को कटघरे में खड़ा करते आ रहे हैं।
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