नई दिल्ली: 33 वर्ष पूर्व कश्मीर से अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ। इस बीच कितनी ही सरकारें आईं कितनी गईं, कितने मौसम आए, गए, पीढ़ियां तक बदल गईं, किन्तु कश्मीरी पंडितों की घर वापसी और इन्साफ के लिए लड़ाई जारी है।
On this day in 1990, Kashmiri (Hindu) Pandits had only 4 choices in front of them “Raliv (Convert), Gaaliv (Die), Chaliv (Run)” and then they were massacred by radical Islamists, forcibly displaced!
— Dr. Syed Rizwan Ahmed (@Dr_RizwanAhmed) January 19, 2023
Never forgive, never forget!#KashmiriHinduGenocide pic.twitter.com/zFyHuqA20a
पलायन की कहानी किसी से छिपी नहीं है। सन् 1989-1990 में जो हुआ, उसका जिक्र करते-करते तीन दशक गुजर गए, किन्तु इस पीड़ित समुदाय के लिए कुछ नहीं बदला है। हालांकि जो बदल रहा है उससे इस सुमदाय के अस्तित्व, संस्कृति, रीति-रिवाज, भाषा, मंदिर और अन्य धार्मिक स्थल धीरे-धीरे समय चक्र के व्यूह में लुप्त होने के मुहाने पर है।
19th Jan, 1990
— Ritu #सत्यसाधक (@RituRathaur) January 19, 2023
When #KashmiriHinduGenocide witnessed in its ugliest, cruelest manifestation in humane brutal hate murder of #GirijaTickoo
Her moslem colleague in the library got her brutally gang raped, sodomised & murdered
Islamists cut her in two with a mechanical saw alive pic.twitter.com/QF5IYVi7RE
जनवरी का माह पूरी दुनिया में न्यू ईयर के लिए एक उम्मीद ले कर आता है, किन्तु कश्मीरी पंडितों के लिए यह माह दुख, दर्द और निराशा से भरा हुआ है। 19 जनवरी प्रतीक बन चुका है उस त्रासदी का, जो 1990 में कश्मीर में घटित हुई। जिहादी इस्लामिक ताकतों ने कश्मीरी पंडितों पर ऐसा कहर बरपाया कि उनके लिए केवल तीन ही विकल्प थे - या तो धर्म बदलो, मरो या पलायन करो। इसी डर के मारे चार लाख कश्मीरी पंडित रातों रात अपना सबकुछ छोड़कर पलायन कर गए थे।
आज से 33 वर्ष पहले आज ही का दिन था, जब #KashmiriHindus का बलात्कार किया गया, लूटा गया, उनकी हत्या की गई।
— ब्रिजेश अवधनारायण शुक्ल (@sanatanishukla9) January 19, 2023
आज ही वह दिन था जब वे अपने ही देश में शरणार्थी बनकर गए। और ये सब करने कोई बाहर से नही आया था उनका पड़ोसी अब्दुल ने सब किया था। #KashmiriHinduGenocide pic.twitter.com/Iqe9Ge5zNQ
आतंकवादियों ने सैकड़ों अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों को बेरहमी से मार डाला था। कई महिलाओं के साथ गैंगरेप कर उनकी हत्या कर दी गई थी। उन दिनों कितने ही लोगों की आए दिन अपहरण कर उन्हें मारा-पीटा जाता था। पंडितों के घरों पर पत्थरबाजी, मंदिरों पर निरंतर हमले हो रहे थे। घाटी में उस वक़्त कश्मीरी पंडितों की सहायता के लिए कोई नहीं था, ना तो पुलिस, ना प्रशासन, ना कोई नेता और ना ही कोई मानवाधिकार के लोग। आज भी ये लोग सरकार के सामने आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं, कि उनकी सुनवाई हो सके।
#neverforget #KashmiriPandits #KashmiriHinduGenocide #19JanuaryKashmiriHinduDay pic.twitter.com/7C066ffeJG
— रेखा दाधीच (@jijis3534) January 19, 2023
हालाँकि, आज भी उनकी पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं है, 'न्याय का सबसे बड़ा मंदिर' कहा जाने वाला सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) कई बार इस मामले पर सुनवाई करने से इंकार कर चुका है। हर बार अदालत की दलील रही कि, 1990 का केस होने के कारण ये बहुत पुराना हो चुका है, इसलिए इस पर सुनवाई नहीं की जा सकती। लेकिन, इसी सुप्रीम कोर्ट ने जब 1984 के सिख नरसंहार पर सुनवाई की, तो कश्मीरी हिन्दुओं को थोड़ी उम्मीद जगी कि शायद अदालत अब उनका दर्द भी सुन लेगी। मगर, कश्मीरी हिन्दुओं को वापस वही 'पुराना मुकदमा' वाला जवाब देकर खाली हाथ लौटा दिया गया।
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