11 अगस्त साल 1908 को यह महान क्रांतिकारी शहीद हो गए थे, महज 18 साल की छोटी सी उम्र में उन्हें फांसी दे दी गई थी. खुदीराम का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी गांव में बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस के घर हुआ था. उनकी माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था.
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बालक खुदीराम के दिल में देश को आजाद कराने की ऐसी ललक जगी कि नौवीं कक्षा के बाद ही उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और मुक्ति आंदोलन में कूद पड़े. स्कूल छोड़ने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बन गए और वन्दे मातरम् के पर्चे वितरित करने में उन्होंने अहम् भूमिका निभाई. 1905 में बंगाल के विभाजन के विरोध में चलाए गए आंदोलन में वे सबसे आगे थे.
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6 दिसंबर 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किए गए बम ब्लास्ट में भी उनका नाम सामने आया था. इसके बाद उन्हें एक क्रूर अंग्रेज अधिकारी किंग्सफोर्ड को मारने की जिम्मेदारी सौंपी गई और इसमें उन्हें प्रफ्फुल चंद्र चाकी का साथ मिला. दोनों बिहार के मुजफ्फरपुर जिले पहुंचे और एक दिन मौका देखकर उन्होंने किंग्सफोर्ड की बग्घी में बम फेंक डाला. लेकिन बदकिस्मती से उस बग्घी में किंग्सफोर्ड मौजूद नहीं था. बल्कि एक दूसरे अंग्रेज़ अधिकारी की पत्नी और बेटी बैठे हुए थे, उन दोनों की मौत हो गई. बम फेंकने के बाद गिरफ्तार किए खुदीराम ने मात्र 18 साल की उम्र में हाथ में भगवद गीता लेकर हँसते-हँसते फंदा पहन लिया और शहीद हो गए.
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