सन 1932, ब्रिटिश शासन से मुक्ति पाने को देश में जंग छिड़ी हुई थी। ऐसे समय में महादेवी वर्मा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में MA की डिग्री ली। उन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मिली। वे विदेश जाने को लेकर असमंजस की स्थिति में थीं। इसलिए वे मार्गदर्शन लेने के लिए महात्मा गांधी से मिलने अहमदाबाद पहुंची।
उन्होंने महात्मा गांधी से पूछा 'बापू मैं विदेश जाऊं या नहीं? कुछ देर मौन रहने के बाद गांधीजी ने कहा कि 'अंग्रेजों से हमारी लड़ाई चल रही है और तू विदेश जाएगी? अपनी मातृभाषा के लिए काम करो और बहनों को शिक्षा दो।' यहीं से महादेवी के जीवन की दिशा बदल गई। महादेवी की मुंहबोली पौत्री आरती मालवीय बताती हैं कि 'दादी मां नारी समस्याओं को लेख के माध्यम से उभारकर उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करती थीं। 'चांद' पत्रिका के संपादन काल में लेखों में लगातार नारी समस्याओं, उनके उत्थान के संबंध में लिखती रहीं। प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य के रूप में लड़कियों के पाठ्यक्रम में सबसे पहले गृह विज्ञान को शामिल किया।'
राष्ट्रीय महिला मंच की प्रमुख कवयित्री रचना सक्सेना का कहना हैं कि स्वरूप नारायण वर्मा से महादेवी का बाल विवाह हुआ, किन्तु फिर भी उन्होंने पढ़ाई करना जारी रखा। अविवाहिता की भांति अपना पूरा जीवन व्यतीत किया और देश की नारियों को सम्मान और आत्मनिर्भरता के साथ जीने की प्रेरणा देती रहीं।
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