आज पूरी दुनिया में विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाया जा रहा है। लेकिन सवाल है कि दुनिया में वृद्ध दिवस मनाने की जरुरत क्यों पड़ी? क्यों बुजुर्गों की उपेक्षा एवं प्रताड़ना की स्थितियां अब भी बनी हुई हैं? आज वृद्ध अपने ही घर की चौखट पर सहमा-सहमा खड़ा है, उसकी आंखों में भविष्य को लेकर डर है, असुरक्षा और खौफ है, वहीं दिल में अन्तहीन वेदना है।
इन त्रासद एवं डरावनी स्थितियों से वृद्धों को मुक्ति दिलाने के लिए इस दिवस का आयोजन किया जाता है। दुनियाभर में इस दिवस को मनाने के तरीके विभिन्न हो सकते हैं, लेकिन सभी का मुख्य मकसद यह होता है कि वे अपने बुजुर्गों के योगदान को न भूलें और उन्हें अकेलापन महसूस न होने दें। हमारा देश तो बुजुर्गों को भगवान का दर्जा देता है। इतिहास में ऐसे अनेक उदहारण हैं, जिसमे माता-पिता की आज्ञा से भगवान श्रीराम जैसे अवतारी पुरुषों ने राजपाट त्याग कर वनों में समय बिताया, मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार ने अपने अन्धे माता-पिता को काँवड़ में बैठाकर चारधाम के दर्शन। इतनी समृद्ध विरासत होने के बाद फिर क्यों आधुनिक समाज में वृद्ध माता-पिता और उनकी संतान के बीच खाई बढ़ती जा रही हैं।
आज का वृद्ध समाज-परिवार से कटा हुआ रहने को विवश है और सामान्यतः इस बात से सर्वाधिक दुःखी है कि जीवन का भरपूर अनुभव होने के बाद भी कोई न तो उनकी सलाह लेना चाहता है और न ही उनकी राय को अहमियत देता है। समाज में अपनी एक तरह से महत्त्व न समझे जाने की वजह से हमारा वृद्ध समाज दुःखी, उपेक्षित एवं त्रासद जीवन जीने को मजबूर है। वृद्ध समाज को इस दुःख और कष्ट से निजात दिलाना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
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