कभी बौद्धों की धरती रहा 'अरुणाचल' आज ईसाई बहुल राज्य..! क्या इस परिवर्तन को समझ रहा भारत..?

कभी बौद्धों की धरती रहा 'अरुणाचल' आज ईसाई बहुल राज्य..! क्या इस परिवर्तन को समझ रहा भारत..?
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ईटानगर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC) की सदस्य डॉ. शमिका रवि ने हाल ही में जनसांख्यिकी परिवर्तन और धर्मांतरण के मुद्दे पर एक बड़ा बयान दिया है, जिससे इस संवेदनशील विषय पर नई बहस छिड़ गई है। डॉ. शमिका ने स्पष्ट किया कि प्रजनन दर में गिरावट का मतलब यह नहीं है कि जनसांख्यिकी में बदलाव नहीं हो रहा है। उन्होंने अरुणाचल प्रदेश का उदाहरण देते हुए कहा कि यह राज्य, जो 2001 तक बौद्ध बहुल था, 2011 की जनगणना में ईसाई बहुल बन गया। उन्होंने धर्मांतरण को प्रजनन दर से बड़ी चुनौती बताया और इस विषय पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

उन्होंने कहा, "यह सही है कि मुस्लिम समुदाय की प्रजनन दर में गिरावट देखी जा रही है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जनसंख्या संतुलन स्थिर है। बदलाव का बड़ा कारण धर्मांतरण है।" डॉ. शमिका ने इस संदर्भ में पश्चिमी यूरोप का उदाहरण दिया, जहां अल्पसंख्यकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि भारत भी उसी स्थिति की ओर बढ़ रहा है, जहां बहुसंख्यक समुदाय घट रहा है और अल्पसंख्यक समुदाय बढ़ रहा है। यह बदलाव केवल प्रजनन दर की वजह से नहीं हो सकता, इसके पीछे धर्मांतरण का बड़ा हाथ है।

डॉ. शमिका ने अरुणाचल प्रदेश का विशेष रूप से जिक्र किया। 2001 तक यह राज्य बौद्ध बहुल था, लेकिन 2011 की जनगणना में इसे ईसाई बहुल राज्य के रूप में देखा गया। यह सवाल उठाता है कि वहां बौद्ध समुदाय का क्या हुआ? क्या उन्होंने धर्मांतरण कर लिया, या वे राज्य छोड़कर चले गए? और अगर उन्होंने धर्मांतरण किया, तो ऐसा क्यों हुआ? सवाल यह भी उठता है कि इस बड़े बदलाव पर कभी राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा क्यों नहीं हुई? क्यों बौद्ध धर्मगुरुओं और दलित राजनीति करने वाले नेताओं ने इस मुद्दे को कभी गंभीरता से नहीं उठाया?

अरुणाचल प्रदेश में बौद्ध धर्म का स्थानांतरण केवल आंकड़ों का खेल नहीं है, यह उस सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक बदलाव की कहानी है, जिसमें एक समुदाय की जड़ें उखाड़ दी गईं। क्या कभी किसी ने यह सोचा कि बौद्ध बहुल राज्य में बौद्ध समुदाय के लोग अचानक से विलुप्त क्यों होने लगे? क्या वे अपनी जमीनें और पहचान छोड़कर भाग गए, या फिर उन्होंने अपने धर्म को त्याग दिया और ईसाई धर्म अपना लिया? और यदि उन्होंने धर्मांतरण किया, तो इसके पीछे क्या कारण रहे? 

डॉ. शमिका ने कहा कि देश के हर हिस्से की सामाजिक संरचना को संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने इस बात की ओर भी ध्यान दिलाया कि धर्मांतरण जैसे मुद्दे पश्चिम बंगाल, असम, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि, धर्मांतरण का मुद्दा भारत में नया नहीं है। आर्थिक रूप से कमजोर, अशिक्षित और पिछड़े समुदायों को अक्सर बेहतर जीवन, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का वादा करके धर्म बदलने के लिए प्रेरित किया जाता है। अरुणाचल प्रदेश में भी यही हुआ। यहां के बौद्ध समुदाय को धीरे-धीरे धर्मांतरण की ओर धकेला गया। मिशनरी संगठनों ने सुदूर इलाकों में जाकर ईसाई धर्म का प्रचार किया और लोगों को यह विश्वास दिलाया कि ईसाई धर्म अपनाने से उनका जीवन बेहतर हो जाएगा। 

बौद्ध धर्मगुरु, जो गरीब और पिछड़े हिंदुओं को बौद्ध धर्म में लाने के लिए सक्रिय रहे हैं, उन्होंने कभी अरुणाचल में धर्मांतरण के इस मुद्दे पर आवाज क्यों नहीं उठाई? अगर उनके अपने समुदाय के लोग धर्मांतरण कर रहे थे, तो उन्होंने इसे रोकने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाया? इसी तरह, जो नेता दलित वोट बैंक के सहारे सत्ता का सुख भोगते हैं, उन्होंने भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रखी। 

अरुणाचल प्रदेश को राष्ट्रीय स्तर पर अक्सर नजरअंदाज किया गया है। ऐसा लगता है जैसे इसे देश का हिस्सा ही न माना गया हो। क्या यह हमारी सामूहिक विफलता नहीं है कि हम देश के एक कोने में हो रहे इस बड़े सामाजिक परिवर्तन को अनदेखा कर रहे हैं? कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, और सौराष्ट्र से लेकर पूर्वोत्तर के अंतिम छोर तक, हर इंच भूमि भारत का हिस्सा है। लेकिन क्या शेष भारत ने कभी अरुणाचल के बौद्ध समुदाय के साथ हो रहे इस अन्याय को गंभीरता से लिया?

एक सवाल यह भी है कि अरुणाचल के बौद्ध समुदाय ने क्या अपना धर्म छोड़ दिया या वहां से पलायन कर गए? अगर वे भागे, तो क्यों? क्या उनके पास अपनी भूमि छोड़ने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था? या फिर उनके सामने ऐसे हालात पैदा किए गए कि वे धर्मांतरण के लिए मजबूर हो गए? धर्मांतरण केवल धार्मिक स्वतंत्रता का सवाल नहीं है, यह सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का भी सवाल है। जब एक पूरी आबादी अपना धर्म और संस्कृति छोड़कर दूसरे धर्म को अपना लेती है, तो यह केवल संख्या का मामला नहीं होता, यह उस क्षेत्र की जड़ों और पहचान पर हमला है। 

अरुणाचल प्रदेश की यह कहानी भारत के लिए एक चेतावनी है। अगर आज हम इस मुद्दे को नजरअंदाज करते हैं, तो यह स्थिति अन्य राज्यों में भी देखने को मिल सकती है। पश्चिम बंगाल, असम और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में भी धर्मांतरण की घटनाएं बढ़ रही हैं। यह समस्या केवल धर्मांतरण तक सीमित नहीं है; यह राष्ट्रीय एकता, सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक पहचान के लिए गंभीर खतरा है।

यह समय है कि सरकार और समाज इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करें। धर्मांतरण के पीछे काम कर रहे संगठनों और उनके तरीकों की गहन जांच होनी चाहिए। साथ ही, उन क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर बढ़ाए जाने चाहिए, ताकि आर्थिक मजबूरियों के चलते लोग धर्म बदलने के लिए मजबूर न हों। बौद्ध बहुल अरुणाचल के ईसाई बहुल बनने की यह कहानी केवल एक राज्य की नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है। अगर हम इस मुद्दे को नजरअंदाज करते रहे, तो यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकता है। इसलिए, अब समय आ गया है कि इस विषय पर खुलकर चर्चा हो और ठोस कदम उठाए जाएं।

 

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