नई दिल्ली : दिल्ली राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के ‘सेंटर फॉर डेथ पेनल्टी’ की एक रिपोर्ट के अनुसार मौत की सजा सुनाए गए तीन चौथाई से अधिक दोषी आर्थिक, शैक्षिक तथा सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के हैं। और इनमें से ज्यादातर तो अपने परिवार के प्रमुख या एकमात्र ऐसे सदस्य होते हैं जो आजीविका चलाते हैं।
रिपोर्ट में यह भी पता चला की 270 कैदियों में से 216 (करीब 80 फीसदी) ने जेल में हिरासत में मिली प्रताड़ना के बारे में बताया इन कैदियों की त्वचा सिगरेट से जलाई गई, उनकी उंगलियों के नाखूनों में सुइयां घुसाई गईं, निर्वस्त्र रखा गया, गुप्तांगों में लोहे की छड़ें या शीशे की बोतलें डाली गईं, पेशाब पीने को बाध्य किया गया, हीटर पर पेशाब करने को बाध्य किया गया, तारों से बांधा गया और बुरी तरह पीटा गया।
जिन कैदियों को मौत की सजा सुनाई गई, उनमें से 23 फीसदी तो कभी स्कूल गए ही नहीं और 61.6 फीसदी ने उच्चतर माध्यमिक तक की शिक्षा भी पूरी नहीं की।