इस साल आषाढ़ मास का आशा दशमी पर्व (Asha Dashmi 2022) 9 जुलाई 2022, दिन शनिवार को मनाया जाने वाला है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि यह व्रत जीवन की सभी आशाओं को पूर्ण करने वाला माना जाता है। जी हाँ और इस व्रत का प्रारंभ महाभारत काल से माना जाता है और इसका महत्व भगवान श्री कृष्ण ने पार्थ को बताया था। कहा जाता है आशा दशमी व्रत को आरोग्य व्रत भी कहा जाता है क्योंकि इस व्रत के प्रभाव से शरीर हमेशा निरोगी तथा मन शुद्ध रहता है। केवल यही नहीं बल्कि इसी के साथ ही पीड़ित व्यक्ति को असाध्य रोगों से मुक्ति भी मिलती है। आज हम आपको बताते हैं इसकी पूजा विधि।
मंत्र-
यहां पढ़ें आशा दशमी व्रत की पौराणिक व्रत कथा, जो भगवान श्री कृष्ण ने अपने पार्थ को सुनाई थी। इस कथा के अनुसार (Asha Dashmi katha) प्राचीन काल में निषध देश में एक राजा राज्य करते थे। उनका नाम नल था। उनके भाई पुष्कर ने द्यूत में जब उन्हें पराजित कर दिया, तब नल अपनी भार्या दमयंती के साथ राज्य से बाहर चले गए।
वे प्रतिदिन एक वन से दूसरे वन भ्रमण करते रहते थे तथा केवल जल ग्रहण करके अपना जीवन-निर्वाह करते थे और जनशून्य भयंकर वनों में घूमते रहते थे। एक बार राजा ने वन में स्वर्ण-सी कांति वाले कुछ पक्षियों को देखा। उन्हें पकड़ने की इच्छा से राजा ने उनके ऊपर वस्त्र फैलाया, परंतु वे सभी वस्त्र को लेकर आकाश में उड़ गए। इससे राजा बड़े दु:खी हो गए।
वे दमयंती को गहरी निद्रा में देखकर उसे उसी स्थिति में छोड़कर वहां से चले गए। जब दमयंती निद्रा से जागी, तो उसने देखा कि राजा नल वहां नहीं हैं। राजा को वहां न पाकर वह उस घोर वन में हाहाकार करते हुए रोने लगी। महान दु:ख और शोक से संतप्त होकर वह नल के दर्शन की इच्छा से इधर-उधर भटकने लगी।
इसी प्रकार कई दिन बीत गए और भटकते हुए वह चेदी देश में पहुंची। दमयंती वहां उन्मत्त-सी रहने लगी। वहां के छोटे-छोटे शिशु उसे इस अवस्था में देख कौतुकवश घेरे रहते थे। एक बार कई लोगों में घिरी हुई दमयंती को चेदि देश की राजमाता ने देखा। उस समय दमयंती चंद्रमा की रेखा के समान भूमि पर पड़ी हुई थी। उसका मुखमंडल प्रकाशित था।
राजमाता ने उसे अपने भवन में बुलाया और पूछा- तुम कौन हो? इस पर दमयंती ने लज्जित होते हुए कहा- मैं विवाहित स्त्री हूं। मैं न किसी के चरण धोती हूं और न किसी का उच्छिष्ट भोजन करती हूं। यहां रहते हुए कोई मुझे प्राप्त करेगा तो वह आपके द्वारा दंडनीय होगा। देवी, इसी प्रतिज्ञा के साथ मैं यहां रह सकती हूं।
राजमाता ने कहा- ठीक है, ऐसा ही होगा। तब दमयंती ने वहां रहना स्वीकार किया। इसी प्रकार कुछ समय व्यतीत हुआ। फिर एक ब्राह्मण दमयंती को उसके माता-पिता के घर ले आया किंतु माता-पिता तथा भाइयों का स्नेह पाने पर भी पति के बिना वह बहुत दुःखी रहती थी। एक बार दमयंती ने एक श्रेष्ठ ब्राह्मण को बुलाकर उससे पूछा- 'हे ब्राह्मण देवता! आप कोई ऐसा दान एवं व्रत बताएं जिससे मेरे पति मुझे प्राप्त हो जाएं।'
इस पर उस ब्राह्मण ने कहा- 'तुम मनोवांछित सिद्धि प्रदान करने वाले आशा दशमी व्रत को करो, तुम्हारे सारे दु:ख दूर होंगे तथा तुम्हें अपना खोया पति वापस मिल जाएगा।' तब दमयंती ने 'आशा दशमी' व्रत का अनुष्ठान किया और इस व्रत के प्रभाव से दमयंती ने अपने पति को पुन: प्राप्त किया।
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