जयपुर: फोन टैपिंग मामले में दिल्ली पुलिस ने बुधवार (25 सितंबर) को राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पूर्व OSD (विशेष कार्य अधिकारी) लोकेश शर्मा से पहली बार पूछताछ की। शर्मा ने पुलिस को बताया कि उन्हें 16 जुलाई 2020 को शाम के समय खुद अशोक गहलोत से ऑडियो टेप मिले थे। गहलोत ने उनसे कहा था कि यह ऑडियो मीडिया में प्रसारित किया जाए। पूर्व OSD का कहना है कि इस मामले में पूर्व सीएम अशोक गहलोत से पूछताछ होनी चाहिए, क्योंकि सबकुछ उनके निर्देश पर ही हुआ है।
शर्मा ने अपने बयान में यह भी कहा कि अशोक गहलोत ने कांग्रेस नेता सचिन पायलट और अन्य राजनीतिक विरोधियों की फोन टैपिंग कराई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि गहलोत लगातार पायलट की गतिविधियों पर नजर रख रहे थे। पहले शर्मा ने दावा किया था कि उन्हें ये ऑडियो क्लिप सोशल मीडिया से मिले थे, लेकिन अब उन्होंने स्वीकार किया है कि गहलोत ने ही उन्हें यह टेप दिए थे और इसे सार्वजनिक करने का निर्देश दिया था। शर्मा का कहना है कि अब जब उन पर पूरी जिम्मेदारी डाली जा रही है, तो उन्हें सच बताना पड़ा।
2021 में भाजपा नेता गजेंद्र सिंह शेखावत की शिकायत पर इस मामले में FIR दर्ज की गई, जिसमें शर्मा पर आपराधिक साजिश और अवैध फोन टैपिंग का आरोप लगाया गया है। 2020 में लीक हुए ऑडियो टेप में शेखावत का नाम आया था, जिसमें वह अन्य लोगों के साथ मिलकर गहलोत सरकार को गिराने की साजिश रचते हुए सुने गए थे। इस कांड के सामने आने के बाद लोकेश शर्मा को मुख्य आरोपी बनाया गया।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री रहते हुए विपक्षी नेताओं के फोन असंवैधानिक तरीके से क्यों टैप कराए? यहां तक कि उन्होंने अपनी ही पार्टी के नेता सचिन पायलट को भी नहीं बख्शा। क्या इस प्रकार के गंभीर आरोपों के बाद पूर्व सीएम अशोक गहलोत को सजा मिलनी चाहिए? यह मामला न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि सरकार की नैतिकता पर भी सवाल खड़ा करता है।
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