झारखंड। दक्षिण एशियाई देशों के सैफ आर्चरी गेम्स में भारत के लिए, दो स्वर्ण पदक जीतने वाले अशोक सोरेन के कच्चे घर की दीवारों पर मेडल लगे देख, ऐसा लगता है, जैसे यह किसी खिलाड़ी का घर है। जी हां, जिस घर पर मीडिया पहुंचा वह घर था वर्ष 2008 के दक्षिण एशियाई देशों के सैफ आर्चरी गेम्स में भारत के लिए दो, स्वर्ण पदक जीतने वाले अशोक सोरेन का जी हां, मगर अब वे मनरेगा के सहारे जीने पर मजबूर हैं। तीरंदाजी अब उनके लिए बीते समय की बात हो गई है वे तो अब मनरेगा में फावड़ा ही चलाते नज़र आ जाते हैं । वे खेतों में काम करने जाते हैं।
जब मीडिया उनके घर पहुंचा तो वे खेत में काम करने गऐ हुए थे, वहां से वापस लौटने के बाद, मीडिया से उनकी चर्चा प्रारंभ हुई। उनके चाचा सोनाराम सोरेेन उनके साथ बैठे थे। इतने में ही वे गांव की पगडंडियों से होते हुए, अपने घर के रास्ते पर पहुंचे, कुछ ही देर में वे अपने घर में दाखिल हो गए।
यहां पहुंचकर उन्होंने, सबसे पहले मौजूद लोगों का अभिवादन स्वीकार किया। उन्होंने समाचार पत्रों में प्रकाशित अपनी तस्वीरों को दिखाया। इन तस्वीरों में अशोक सोरेन के गले में गोल्ड मेडल नज़र आ रहा है। हाथों की अंगुलियों से उन्होंने विक्टरी साइन बनाकर रखा हुआ है।
उनका कहना था कि, मां के चले जाने के बाद, घर चलाने वाला कोई नहीं था। ऐसे में उन्हें मजदूरी करना पड़ गई। अशोक सोरेन ने कहा कि, मजदूरी कर घर चलाना पड़ता था। उन्होंने कहा कि, उनके भाई को देखकर उन्होंने तीरंदाजी का प्रशिक्षण प्राप्त किया। बचपन से ही उन्होंने तीरंदाजी का प्रशिक्षण प्राप्त किया।
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