गुवाहाटी: असम कैबिनेट ने एक नए विधेयक को मंजूरी दे दी है, जिसमें काजियों या मौलवियों को मुसलमानों की शादियों का पंजीकरण करने से रोक दिया गया है। असम अनिवार्य विवाह और तलाक पंजीकरण विधेयक में बाल विवाह के पंजीकरण पर भी रोक लगाई गई है। मुस्लिम पर्सनल लॉ के कुछ प्रावधानों को निरस्त करने वाला यह विधेयक शुक्रवार को असम विधानसभा के मानसून सत्र में पेश किया जाएगा।
इसे असम में समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में पहला कदम माना जा रहा है । नए कानून के अनुसार, मुस्लिम विवाहों का पंजीकरण एक उप-पंजीयक द्वारा किया जाएगा। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "हमने एक विधेयक पेश किया है, जिसके अनुसार 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों की कोई भी शादी पंजीकृत नहीं की जाएगी। इसके अलावा, पंजीकरण का अधिकार काजी से उप-रजिस्ट्रार को हस्तांतरित कर दिया जाएगा।"
सरमा ने आगे कहा, "विभिन्न समुदायों में विवाह की रस्मों के लिए अलग-अलग संस्कृतियां हैं। हमारे विधेयक की उसमें कोई भूमिका नहीं है। इसमें केवल सरकारी अधिकारी द्वारा विवाह पंजीकरण का प्रावधान किया गया है। बाकी सब वही रहेगा चाहे वह हिंदू विवाह के लिए हो या मुस्लिम विवाह के लिए।" मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले 21 वर्ष से कम आयु के मुस्लिम लड़के और 18 वर्ष से कम आयु की लड़कियों के बीच विवाह का पंजीकरण किया जा सकता था।
उन्होंने कहा, "नए कानून के तहत इस प्रथा पर रोक लगेगी। अब से राज्य में कोई भी मुस्लिम नाबालिग लड़की अपनी शादी का पंजीकरण नहीं करा सकेगी।" मुस्लिम विवाह और तलाक की प्रक्रिया काजी या मौलवियों द्वारा देखरेख की जाती है। इस साल की शुरुआत में, सरकार ने एक अध्यादेश के माध्यम से असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को निरस्त कर दिया था।
असम भर के कई मुस्लिम संगठनों ने मुख्यमंत्री से काजी व्यवस्था को बहाल करने का अनुरोध किया है। सरमा ने यह भी कहा कि सरकार एक नया कानून लाएगी जो 'लव जिहाद' को अपराध घोषित करेगा और दोषी पाए जाने वालों को आजीवन कारावास की सजा देगा।
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