नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा आज लोकसभा में 1995 के वक्फ अधिनियम में संशोधन करने वाला विधेयक पेश किया गया है, जिसके बाद तुरंत ही विपक्ष ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस इसे संविधान के खिलाफ, मुसलमानों के खिलाफ, मजहबी आज़ादी के खिलाफ बता रही है। वहीं, भरत सरकार का कहना है कि, वो सिर्फ इस एक्ट में संशोधन कर रही है, ताकि पीड़ित कम से कम कोर्ट तो जा सके। दरअसल, 2013 में कांग्रेस सरकार ने जाते जाते वक़्फ़ बोर्ड को असीमित ताकत दे दी थी, जिसके अनुसार, यदि वक्फ किसी भी संपत्ति पर दावा ठोंक दे, तो पीड़ित शख्स कोर्ट भी नहीं जा सकता। उसे वक्फ ट्रिब्यूनल के सामने ही जाकर गुहार लगानी होगी, फिर वक्फ की मर्जी, वो जमीन वापस दे या ना दे। केंद्र सरकार चाहती है कि, विवादित जमीन का निपटारा कोर्ट में हो, इसलिए संशोधन बिल लाइ है, मगर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल, वक़्फ़ बोर्ड की शक्तियां कम करने के खिलाफ है।
एडवोकेट विष्णु शंकर जैन बता रहे हैं कि कैसे कांग्रेस द्वारा वक्फ एक्ट1954का अमेंडमेंट करके सेक्शन 66H लाया गया और वक्फ एक्ट1995 एक कठोर कानून बन गया ,जो वक्फ बोर्ड को हिंदू संपत्तियों और पूजा स्थलों पर अतिक्रमण करने का अधिकार देता है।
— Vinay Dwivedi (@Vinay_Dwivedii) January 29, 2024
यह संविधान और लोकतंत्र की भावनाके खिलाफ है pic.twitter.com/JRLBsFqUYB
भारत सरकार का दावा है कि संशोधनों को समावेशी माहौल को बढ़ावा देने, वक्फ संस्थाओं के भीतर शासन और पारदर्शिता के मुद्दों को संबोधित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। विधेयक राज्य वक्फ बोर्डों की शक्तियों, वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण और सर्वेक्षण और अतिक्रमणों को हटाने से संबंधित चिंताओं को दूर करने का प्रयास करता है, जिससे बेहतर निगरानी और प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा मिलता है। हालांकि, विपक्ष का दृष्टिकोण इससे बिल्कुल अलग है। उनका तर्क है कि ये संशोधन वक्फ संस्थाओं के आधारभूत ढांचे पर सीधा हमला है, और सरकार के इस कदम को मुसलमानों की मजहबी आज़ादी को कमज़ोर करने का प्रयास बताया जा रहा है।
भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार आज गुरुवार (8 अगस्त) को लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश कर चुकी है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने इस विधेयक को पेश किया है। जिसके बाद विपक्ष ने हंगामा मचाना शुरू कर दिया और इसे मुसलमानों के खिलाफ बताने लगे। असदुद्दीन ओवैसी से लेकर कई मुस्लिम संगठनों ने भी इसका विरोध किया है, क्योंकि भारत सरकार का नया कानून उनकी जमीन कब्जाने की असीमित ताकत को कम कर देगा, जो वे नहीं चाहते। इसी कारण विपक्ष भी विरोध कर रहा है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय उनका मुख्य वोट बैंक है।
लेकिन, गौर करने वाली बात ये है कि भारत में वक्फ की संपत्ति 9 लाख एकड़ से अधिक में फैली हुई है और तेजी से बढ़ रही है, इस पर किसी सरकार या कोर्ट का भी कोई नियंत्रण नहीं है। पिछले साल वक़्फ़ ने तमिलनाडु के एक पूरे गाँव पर दावा कर दिया था और पीढ़ियों से उस जगह रह रहे लोगों की जमीन छीन गई थी। पीड़ितों के पास पूरे कागज़ भी थे, लेकिन उनकी कहीं सुनवाई नहीं थी। उस गांव में एक 1500 साल पुराना मंदिर भी था, पैगम्बर मोहम्मद के जन्म से भी पहले का, लेकिन वो भी वक्फ का हो गया, क्योंकि, कांग्रेस सरकार द्वारा 2013 में वक्फ को दी गई ताकत ये थी कि कोर्ट भी इस मामले में दखल नहीं दे सकता था और ना सरकार। केवल वक्फ ही इसका निपटारा कर सकेगा, जिसमे कर्मचारी, अधिकारी, विधायक, सांसद, मुतवल्ली, जज सब एक ही समुदाय के होंगे। ऐसा कानून किसी देश में नहीं है, यहाँ तक कि रूढ़िवादी मुस्लिम देशों में भी नहीं, वहां भी देश की जमीन संपत्ति सरकार के अधीन रहती है, लेकिन भारत दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है, जो धर्मनिरपेक्ष होते हुए भी, एक धार्मिक संस्था को इतनी असीमित ताकत दिए हुए है, जो सरकार और न्यायालय से भी परे है। अब केंद्र सरकार इसे कम करना चाहती है, ताकि पीड़ित कम से कम अदालत जा सके और किसी गरीब की जमीन हड़पी ना जाए, तो पूरा विपक्ष इसके विरोध में खड़ा है ।
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