हरियाणा में एक समय में विशेष समाज को थी प्राथमिकता, अन्य के साथ सिर्फ भेदभाव

हरियाणा में एक समय में विशेष समाज को थी प्राथमिकता, अन्य के साथ सिर्फ भेदभाव
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हरियाणा के लोगों को याद होगा कि कांग्रेस के शासनकाल में राज्य गलत वजहों से सुर्खियों में रहता था। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कार्यकाल में सरकार एक खास समाज के प्रति झुकी हुई थी, जिससे अन्य समाज के लोगों को भारी भेदभाव और असमानता का सामना करना पड़ता था। वे दमनकारी माहौल में अपना समय काट रहे थे।

कांग्रेस के कार्यकाल में इस विशेष समाज को इतनी छूट और प्राथमिकता मिली हुई थी कि अन्य समाज के लिए भय, भ्रष्टाचार और भेदभाव का सामना करने के अलावा कोई चारा नहीं था। उस जमाने में नौकरी उन्हें ही मिलती थी, जो सबसे ज्यादा बोली लगाने के लिए तैयार थे। 'खर्ची-पर्ची' की व्यवस्था राज्य सरकार की कार्यप्रणाली का अंग बन चुका था।

कांग्रेस शासन में एक विशेष समाज को छूट और प्राथमिकता दी गई थी, अन्य समाज को डर, भ्रष्टाचार तथा भेदभाव का सामना करना पड़ता था। जब नौकरी सिर्फ उन्हें ही मिलती थी जो की सबसे अधिक बोली लगाने के लिए तैयार होता था। राज्य सरकार की कार्यप्रणाली का 'खर्ची-पर्ची' की व्यवस्था अंग बन चुका था।

पूरे सिस्टम पर एक समाज का ही दबदबा हो चुका था, जिससे मलाई वाली सभी जगहों पर सिर्फ उसी समाज के लोगों का कब्जा था। अन्य समाज के लोगों को व्यवस्थित तरीके से पूरी व्यवस्था से दूर कर दिया गया था, जहां उनकी कोई सुनने वाला नहीं था। सरकार और शासनतंत्र भी उसी खास समाज के कब्जे में था।

नौकरियों के मामले में विशेष समाज को प्राथमिकता देने की व्यवस्था थी, जिससे अन्य समाज के लोगों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता था। इस भेदभाव के कारण, जो समाज तत्कालीन सिस्टम के लिए अपने नहीं थे, वे आर्थिक तौर पर गरीब होते चले गए। भेदभाव और असमानता का सामना करते हुए उनमें हताशा छाने लगी। वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने को मजबूर थे, लेकिन सरकार और शासनतंत्र की ओर से उन्हें कोई सहयोग नहीं मिलता था।

तबकी राज्य सरकार में विशेष समाज को इतनी छूट मिली हुई थी कि उनके लोग कोई भी अपराध कर दें, उनके खिलाफ कोई केस तक दर्ज नहीं होता था। इस वजह से अन्य समाज के लोगों में डर और दहशत का माहौल बन गया था। उनमे न्याय न मिलने की उम्मीद रह गई थी। वहीं हरियाणा की बहन-बेटियों में भी असुरक्षा की भावना उत्पन्न होने लगी थी। बाहर उत्पीड़न और हिंसा का वातावरण था कि वे अपने घरों में कैद रहने को मजबूर थीं। बेटियों को स्वतंत्रता की उम्मीद न के बराबर रह गई थी। समान अवसर मिलने की उनके सामने कोई उम्मीद भी नहीं थी।

क्षेत्र में विशेष समाज का मानो गुंडाराज कायम था, जो चाहते थे करते थे। जिससे जो चीज कहा जाता था वो करने को मजबूर था। मना करने की हिम्मत और साहस उनमे था नहीं। कांग्रेस के दौर में पूरा सामाजिक ताना-बाना बिगड़ गया था।

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