लखनऊ: बड़े-बुजर्ग हमेशा से कहते आए हैं, वक़्त बड़ा बलवान है, वक़्त जिसके पक्ष में हो, दुनिया उसके आगे नतमस्तक हो जाती है और कर्म के फल भुगतने की बारी आती है और वक़्त बदलता है, तो दुनिया की कोई ताकत फिर उसे बचा भी नहीं सकती. ऐसा ही कुछ समाजवादी पार्टी (सपा) के पूर्व सांसद और माफिया अतीक अहमद के साथ भी हुआ. एक दौर था, जब अतीक के खौफ का आलम ये था कि, हाई कोर्ट के 10-10 जज उसके खिलाफ मामला सुनने से ही अलग हो जाते थे और जो 11वें जज आते थे, वो भी अतीक को जमानत दे देते थे. यहाँ तक कि, 2007 में अतीक ने सोनिया गांधी की रिश्तेदार वीरा गांधी की जमीन भी हड़प ली थी, मगर मुलायम सरकार में कोई उसपर हाथ नहीं डाल पाया. आख़िरकार, केंद्र की मनमोहन सरकार को दखल देना पड़ा, तब जाकर सोनिया की रिश्तेदार को संपत्ति वापस मिली. लेकिन, जब अतीक के सर से सियासी संरक्षण हटा और कानून का शिकंजा कसा, तो 3 मामूली बदमाशों ने उसके सिर में गोली मार दी. वैसे तो ये अपराधियों द्वारा अपराधी की हत्या थी, लेकिन इसपर बवाल ऐसे मचा, जितना पालघर में पुलिस के सामने संतों को पीट-पीटकर मारे जाने पर भी नहीं मचा था. कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए और अतीक के लिए न्याय मांगने लगे. हालाँकि, जब तक अतीक जुल्म कर रहा था और जज उसके खौफ के कारण सुनवाई नहीं कर रहे थे, राजनेता उसे संरक्षण दे रहे थे, तब तक सिब्बल चुप थे और न्याय व्यवस्था भी एकदम दुरुस्त थी. अब अतीक और अशरफ की हत्या की जांच के लिए उनकी बहन आयशा नूरी ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है.
शीर्ष अदालत में दाखिल अपनी याचिका में अतीक के बेटे असद के एनकाउंटर को भी संदिग्ध करार दिया है. आयशा ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज के नेतृत्व में अतीक, अशरफ और असद की मौत मामले में जांच आयोग बनाने की मांग की है. बता दें कि इस मामले में विशाल तिवारी नामक वकील की PIL पर सर्वोच्च न्यायालय ने 28 अप्रैल को यूपी सरकार से जांच की स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी. 3 जुलाई को वह PIL सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हुई है. बता दें कि, अतीक और अशरफ को अप्रैल माह में तब गोली मार दी गई थी जब वह उमेश पाल हत्याकांड में उत्तर प्रदेश पुलिस की हिरासत में लिया गया था और पुलिस देर रात दोनों माफिया बंधुओं का मेडिकल चेकअप कराने के लिए हॉस्पिटल लेकर जा रही थी. उसी समय मीडिया कर्मी बन कर आए 3 अपराधियों ने प्वाइंट ब्लैंक रेंज से दोनों माफिया बंधुओं को गोली मार दी थी, जिससे दोनों भाई ने वहीं दम तोड़ दिया था.
अतीक-अशरफ अहमद को गोली मारने के बाद तीनों अपराधियों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था और पुलिस उनको अरेस्ट कर अपने साथ ले गई थी. अतीक की हत्या उस शाम हुई थी, जिस सुबह उसके बेटे असद को दफ़न किया गया था. दरअसल, अतीक और अधिक मुश्किलों में तब घिर गया था, जब उसके बेटे असद और गैंग के बाकी लोगों ने दिन-दहाड़े एक बसपा विधायक राजू पाल हत्याकांड के मुख्य और एकमात्र जीवित गवाह उमेश पाल की बम-गोली मारकर हत्या कर दिन-दहाड़े हत्या कर दी थी. बसपा विधायक राजू पाल हत्याकांड का मामला भी अतीक के ही खिलाफ चल रहा था. अतीक गैंग द्वारा उमेश पाल की हत्या को राज्य के सीएम योगी आदित्यनाथ के शासन में कानून और व्यवस्था के इकबाल की चुनौती के रूप में देखा गया. मामला तब और गाढ़ा हो गया जब विधानसभा सत्र में विपक्षी पार्टी के नेता और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उनसे इस हत्याकांड की जांच को लेकर तंज कसा. इसके जवाब में सीएम योगी ने कहा कि उनकी सरकार माफिया को मिट्टी में मिला देगी.
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