देश में एक अप्रैल 2020 से बीएस-4 वाहनों की बिक्री और रजिस्ट्रेशन नहीं होंगे। वहीं, केंद्र सरकार तो तीन वर्ष पहले ही कह चुकी है कि बीएस-5 मानकों से आगे बढ़कर वर्ष 2020 तक बीएस-6 मानक लागू कर दिए जाएंगे। भारत सरकार ने वर्ष 2000 में स्टैंडर्ड यूरोपीय मानदंडों को भारतीय अनुरूप में अपनाते हुए बीएस यानी 'भारत स्टेज' की शुरुआत की। यह गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण के उत्सर्जन का मानक है। इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड वाहनों के लिए तय करता है
ध्यान देने वाली बात ये है की बीएस-3 वाहनों से निकलने वाला धुआं हमारी सेहत के लिए काफी घातक है, जबकि बीएस-4 भी कुछ कम नहीं है। इनसे निकलने वाला धुआं कई बीमारियों को जन्म देता है, जैसे आंखो में जलन, नाक में जलन, सिरदर्द, फेफड़ो की बीमारी, और उल्टी आना। बीएस-5 और बीएस-6 ईंधन में जहरीले सल्फर की मात्रा बराबर होती है। जहां बीएस-4 ईंधन में 50 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) सल्फर होता है, वहीं बीएस-5 और बीएस-6 दोनों तरह के ईंधनों में सल्फर की मात्रा 10 पीपीएम ही होती है। इसलिए सरकार ने बीएस-4 के बाद सीधे बीएस-6 लाने का फैसला किया।
इसके अलावा इस बात का ध्यान रखे की बीएस-6 वाहन में नया इंजन और इलेक्ट्रिकल वायरिंग बदलने से वाहनों की कीमत में 15 फीसदी का इजाफा हो सकता है। बीएस-6 से वाहनों की इंजन की क्षमता बढ़ेगी। जिसका नतीजा ये होगा कि कारें 4.1 लीटर में 100 किलोमीटर से अधिक माइलेज देंगी। वाहन निर्माता कंपनियां माइलेज में फर्जीवाड़ा नहीं कर पाएंगी।
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