फिर टली 69 साल पुराने अयोध्या मसले पर सुनवाई, जानें पूरा मामला

फिर टली 69 साल पुराने अयोध्या मसले पर सुनवाई, जानें पूरा मामला
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नई दिल्ली। अयोध्या में राम लला विराजमान होंगे या नहीं, इस मसले पर आज से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी थी, जो अब अगले साल तक टल गई है। दरअसल, यह मामला 69 सालों से चल रहा है, ​जिस पर अब तक कोई फैसला नहीं आया है। सुप्रीम कोर्ट ने आज इस मामले की सुनवाई एक बार फिर टाल दी। कोर्ट ने कहा कि अब अगली सुनवाई जनवरी 2019 में  होगी।

'अयोध्या विवाद' बना 'जमीन अधिग्रहण' का मामला, 29 अक्टूबर से सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

कोर्ट ने मामले में कहा कि जनवरी से हर रोज अयोध्या मामले की सुनवाई होगी। अब यह सुनवाई वर्तमान बेंच ही करेगी या इसके लिए नई बेंच गठित की जाएगी। यह फैसला अगली सुनवाई में ही होगा। दरसअल, इस समय अयोध्या मसले को लेकर देश में राजनीति भी जोर—शोर से चल रही है। आगामी चुनावों को देखते हुए देश की प्रमुख पार्टियां इस मुद्दे को अपना चुनावी एजेंडा बनाने की खींचतान में लगी हुई हैं। आज हम आपको बता रहे हैं कि आखिर पूरा आयोध्या मामला है क्या और इस पर कब—कब क्या—क्या हुआ? 

इन याचिकाओं पर होनी थी सुनवाई 

सुप्रीम कोर्ट में आज पहली बार अयोध्या में राम जन्मभूमि पर 2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के  फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई होनी थी। दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को दिए अपने फैसले में कहा था​ कि अयोध्या की जमीन को तीनों पक्षकारों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए। इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और अब इस पर कोर्ट जनवरी में  सुनवाई करेगा। 

ये है पूरा मामला 

-1949 में अयोधया में बनी बाबरी मस्जिद में भगवान राम की मूर्ति देखी गई। इसके बाद राम लला और  बाबरी मस्जिद के पक्षकार कोर्ट गए और विवादित जमीन पर ताला लग  गया। 

-1959 में इस मामले में निर्मोही अखाड़े ने जमीन के स्थानांतरण के लिए अपील की। 

-1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी जमीन पाने के लिए कोर्ट में अपील की। 

- 1986 में विवादित जमीन को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया, लेकिन इसी साल बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया गया। 

-इसी साल यानी 1989 में भी विश्व हिंदू परिषद ने तत्कालीन सरकार की अनुमति से बाबरी मस्जिद के पास ही राम मंदिर का शिलान्यास किया।

- 1990 में इस मसले ने राजनीतिक रूप ले लिया और भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण के लिए देशव्यापी रथयात्रा शुरू की। 

-1991 में आडवाणी की रथयात्रा ने कमाल का काम किया और उत्तरप्रदेश में इस लहर में बीजेपी ने जीत दर्ज की। इसके बाद राजनीतिक दलों ने रामजन्मभूमि को अपना चुनावी एजेंडा बना लिया। 

- 6 दिसंबर, 1992 वह तारीख थी, जब ​इस मामले ने हिंसा का रूप ले लिया। दरअसल, कार सेवकों ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया। इसके बाद पूरे देश में दंगे भड़क गए और हजारों लोग इन दंगों की भेंट चढ़ गए।  

-1992 में ही एक अस्थायी राम मंदिर अयोध्या में बनाया गया। इसी साल तत्कालीन सरकार ने आयोध्या में फिर से मस्जिद निर्माण का वादा मुस्लिम समुदाय से किया। 

- 16 दिसंबर 1992  को मस्जिद गिराने के लिए जिम्मेदार हालातों की जांच के लिए लिब्रहान आयोग गठित किया गया। 

-1994 में इलाहाबद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में बाबरी मस्जिद विध्वंस को लेकर मामला शुरू किया। 

-2001 में इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आया और कोर्ट ने लालकृष्ण आडवाणी सहित सभी 13 नेताओं को बाबरी मस्जिद विध्वंस गिराने की साजिश के आरोपों से बरी कर दिया। 

- जनवरी 2002, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने  मामले को लेकर अयोध्या विभाग बनाया, जिसका काम मामले को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों के बीच बातचीत सुलभ कराना था। 

- अप्रैल 2002, विवादित जमीन पर किस पक्ष का हक है, इसे लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। 

- 5 मार्च 2003 को हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को अयोध्या में खुदाई का आदेश दिया, ताकि यह पता चल सके कि किसके अवशेष यहां  मौजूद हैं। 

-22 अगस्त 2003 को पुरातत्व विभाग ने हाईकोर्ट को अपनी रिपोर्ट  सौंपी। इस रिपोर्ट में कहा गया कि मस्जिद के नीचे 10वीं सदी के मंदिर के अवशेष मिले हैं। इस रिपोर्ट को आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने चुनौती दी। 

-जुलाई 2009 को लिब्रहान आयोग ने अपने गठन के 17 साल बाद इस मामले में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। 

-2010 के जुलाई महीने में मामले की सुनवाई कर रही इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने इस मसले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।  पीठ ने सभी पक्षों से कहा कि वह आपस में बातचीत कर मसले का हल निकालें। इसी साल 30 सितंबर 2010 को लखनऊ पीठ ने अपने फैसले में कहा कि विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया जाए। 

-2011 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसलेू पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। 

-21 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से मामले को आपस में सुलझाने को कहा। 

-अप्रैल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी सहित कई  नेताओं पर आपराधिक मुकदमा चलाने का आदेश दिया। 

-9  नवंबर 2017 को इस मसले पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शिया वक्फ   बोर्ड के चेयरमैन वसीम ​रिजवी मिले और रिजवी ने कहा कि अयोध्या में विवादित जमीन  पर राम मंदिर बनना चाहिए, न कि मस्जिद। उन्होंने कहा मस्जिद मंदिर से दूर बननी चाहिए। 

-दिसंबर 2017 में कोर्ट में एक बार फिर सुनवाई शुरू हुई और सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी 2018 तक सभी दस्तावेज पूरा करने का आदेश दिया। 

-8 फरवरी 2018 को सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने  इस मसले की नियमित सुनवाई करने की अपील सुप्रीम कोर्ट में की। कोर्ट ने उनकी इस अपील को खारिज कर दिया। 

-14 मार्च 2018 को सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील  राजीव धवन ने मांग की कि 1994 के इस्माइल फारूकी बनाम भारतीय संघ के फैसले को पुनर्विचार के लिए बेंच के पास भेजा जाए। 

-20 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने राजवी धवन की अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। 

-27 सितंबर 2018 को कोर्ट ने इस्माइल फारूकी बनाम भारतीय संघ के 1994 के फैसले को बड़ी बेंच को भेजने से इनकार कर दिया।  कोर्ट ने कहा कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दीवानी वाद का निर्णय सबूतों के आधार पर होगा। 

-29 अक्टूबर 2018: कोर्ट ने अयोध्या में विवादित जमीन की सुनवाई जनवरी 2019  तक टाल दी। 

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