नई दिल्ली: अयोध्या राम मंदिर और बाबरी मस्जिद मामले की सर्वोच्च न्यायालय में 25वें दिन की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकार की तरफ से पेश वकील राजीव धवन ने कहा कि प्रतिमा के रूप में स्वयंभू या तो आत्म-अभिव्यक्ति का रूप धारण कर सकता है या फिर मानव भी. हिन्दू पक्ष भगवान राम का सही जन्मस्थान बताने में विफल रहे हैं. इसलिए केवल विश्वास स्वयंभूमि होने के लिए काफी नहीं है. यह एक ऐसी अभिव्यक्ति का होना चाहिए, जिसे हम दिव्य रूप में स्वीकार कर सकते हैं. न्यायमूर्ति बोबड़े ने कहा है कि देवता एक रूप, मानव के रूप में भी हो सकता है और नहीं भी हो सकता है या देवता का दूसरा रूप भी हो सकता है.
धवन ने कहा कि ये हिंदुओं की मान्यता है और यदि ऐसा होता है तो उसकी पूजा की जाती है. राजीव धवन ने कहा कि बाबरी माजिद वक़्फ़ की प्रॉपर्टी है और सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड पर उसका अधिकार है. धवन ने कहा है कि 1885 के बाद ही बाबरी मस्जिद के बाहर के राम चबूतरे को राम जन्मस्थान के रूप में पहचाना जाने लगा. राजीव धवन ने अपनी बहस के दौरान उर्दू के शायर अल्लामा इक़बाल का शेर भी अदालत में पढ़ा- 'है राम के वजूद पर हिंदुस्तान को नाज़, अहल ऐ नज़र समझते हैं इसको इमाम ऐ हिन्द.'
राजीव धवन ने आगे कहा कि 'जन्मस्थान' एक न्यायिक व्यक्ति नहीं हो सकता. धवन ने कहा कि जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्म दिवस के तौर पर मनाई जाती है, किन्तु कृष्ण न्यायिक व्यक्ति नहीं हैं. राजीव धवन ने कहा कि अयोध्या में कम से कम तीन ऐसे स्थान हैं, जहां भगवान राम का जन्म होने का दावा किया जाता है. उन्होंने 1950 में खींची गई तस्वीरों का उल्लेख करते हुए राजीव धवन ने कहा कि बाबरी मस्जिद में कई स्थानों पर अल्लाह लिखा हुआ था...
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