नई दिल्ली: यह बात तो सच है कि अयोध्या का मुद्दा पिछले 5 सदी पुराना है, 134 साल चली कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बीते शनिवार को अयोध्या भूमि विवाद का फैसला दें दिया है. जंहा मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने एकमत से अयोध्या को भगवान राम का जन्मस्थान मानते हुए पूरी 2.77 एकड़ विवादित जमीन रामलला विराजमान को सौंपकर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है.
वही मिली जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 1045 पन्नों में अपना फैसला सुनाया. सामान्यत: किसी भी निर्णय में फैसला लिखने वाले जज के नाम का उल्लेख किया जाता है, लेकिन इस बार कोर्ट ने यह परंपरा तोड़ते हुए निर्णय लिखने वाले जज के नाम का जिक्र नहीं किया गया है.
जंहा पीठ में सीजेआई गोगोई के अलावा जस्टिस बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल रहे. सूत्रों के मुताबिक वहीं, इस निर्णय में 929 पन्नों के बाद 116 पन्ने परिशिष्ट में जोड़े गए हैं, जिनमें विवादित स्थल और श्री राम के जन्मस्थल होने से संबंधित जानकारियां और तर्क दिया जा चुका है. इस परिशिष्ट के लेखक का नाम भी उल्लेखित नहीं किया गया था.
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