नई दिल्ली: आयुर्वेद डॉक्टर और MBBS कर चुके डॉक्टर एक बराबर काम नहीं करते हैं, इसलिए वे एक बराबर वेतन हासिल करने के भी हकदार नहीं हैं। सर्वोच्च न्यायलय ने बुधवार (26 अप्रैल) को एक मामले की सुनवाई करते हुए यह बात कही है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि वेतन के मामले में आयुर्वेद डॉक्टर, MBBS डॉक्टर के बराबर हैं।
इस मामले में न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ सुनवाई कर रही थी। शीर्ष अदालत का कहना है कि यह स्वभाविक सी बात है कि दोनों ही प्रकार के डॉक्टर एक समान वेतन पाने के लिए एक बराबर काम नहीं करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो एमरजेंसी ड्यूटी और ट्रॉमा केयर में एलोपैथी डॉक्टर सक्षम हैं, वैसा काम आयुर्वेद डॉक्टर नहीं कर सकते। इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि आयुर्वेद डॉक्टरों के लिए जटिल सर्जरी में सर्जन का सहयोग करना भी संभव नहीं है। जबकि, MBBS डॉक्टर सर्जरी में सहयोग कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि भले ही चिकित्सा की वैकल्पिक प्रणाली का इतिहास गौरव का रहा हो, मगर, आधुनिक वक़्त में ऐसे डॉक्टर न सर्जरी कर सकते हैं और न सहयोग करने में सक्षम हैं। अदालत ने कहा कि, 'यह सभी जानते हैं कि जनरल हॉस्पिटल्स में OPD में MBBS डॉक्टरों को सैकड़ों मरीज देखने होते है, जबकि आयुर्वेद चिकित्सकों के साथ ऐसा नहीं है। आयुर्वेद डॉक्टरों और स्वदेशी चिकित्सा की आवश्यकता को मानते हुए और इसके प्रचार की जरूरत को समझते हुए हम इस तथ्य को नहीं भुला सकते कि दोनों वर्गों के डॉक्टर समान वेतन पाने के लिए समान कार्य नहीं कर रहे हैं।' बता दें कि, वर्ष 2013 में गुजरात हाई कोर्ट ने एक फैसला देते हुए कहा था कि अपने MBBS समकक्षों की तरह आयुर्वेद डॉक्टर भी 'टिक्कू वेतन आयोग' के तहत भुगतान लाभ पाने के हकदार हैं।
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