आज से ठीक 127 साल पहले 14 अप्रैल 1891 में महू की जमीन पर एक ऐसे विचारक का जन्म हुआ था जिसने उस समय के मौजूदा हालातों पर अपने विचारों से एक ऐसा बदलाव किया है जिसे लोग आज भी याद करते है. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर, जिन्हें उनको प्यार करने वाले प्यार से बाबा साहब भी कहते है, बाबा साहब दुर्भाग्यपूर्ण एक ऐसी व्यवस्था में पैदा हुए जब लोग जाति के नाम पर एक दूसरे का खून करने के लिए आमादा होते थे, एक ऐसी व्यवस्था जिसने उनके दिल और दिमाग में एक ऐसी पीड़ा को जन्म दिया था जिसे शायद बाबा साहब खुद ही समझते होंगे,हम मौजूदा हालातों में शायद ही हम महसूस कर पाए कि उस समय का भारत क्या था.
एक ऐसा भारत जहाँ कुछ इंसान, इंसान थे और कुछ इंसान जानवर, वहाँ समाज की नजर में जानवर बनाए गए कुछ इंसानों को बाबा साहब ने अपना हाथ देकर उठाया, और चलना सिखाया. ये देश का दुर्भाग्य है कि मौजूदा हालातों में देश का एक बड़ा तबका बाबा साहब को दलितों का नेता मानते आया है लेकिन सच बिल्कुल इससे विपरीत है, सच शायद वो ही लोग जानते होंगे जिन्होंने बाबा साहब के विचारों को पढ़ा होगा, बाबा साहब को समझने के लिए इन तबकों को उस समय के हालातों को महसूस करने की जरूरत पड़ेगी, उन हालातों को महसूस तभी किया जा सकता है जब आपके पास कुछ सुन पाने की बुद्धि हो और कुछ पढ़ पाने का समय.
बाबा साहब ने उस समय के हालातों को महसूस कर, जमीनी स्तर पर शोषित तबकों के लिए जो काम किया उसका एहसान शायद ही हम कभी चुका पाए. एक समय, समान अधिकार की बात करने वाला देश जातिवाद की जंजीरों में हजारों सालों से बंधा था, उस देश पर लाठियां बरसाई जाती थी, उस देश के लिए अपना पानी अपना नहीं था, अपने खेत अपने नहीं थे, वो भारत हमेशा पैरों के नीचे कुचला जाता था, उस भारत के लिए उसका धर्म सिर्फ इंसान का गंदा बदबूदार मल ढोना था, उस भारत की परछाई भर से लोगों के दिन खराब होते थे ऐसे समय में उस भारत को इन रूढ़िवादी जंजीरों से छुड़ाने का काम अगर किसी ने किया था तो वो एक ही शख्स है, जिसके विचारों की ताकत के ही कारण आज यह लेख लिख पा रहा हूँ.
बाबा साहब ने सिर्फ उन शोषित तबकों के लिए ही नहीं बल्कि देश की देश की हर बेटी के लिए जो किया उसी का नतीजा है कि आज देश की बेटियां अपने हक के लिए आवाज़ उठा सकती है, अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है, अपने सपनों को पूरा कर सकती है
खैर ये सब बातें मैं हवा में नहीं कर रहा हूँ, इसके लिए मेरे पास मजबूत तर्क है, वो तर्क है हिन्दू कोड बिल, एक ऐसा बिल जो देश को बेटियों को देश में समान अधिकार दिलाता है, एक समय देश जातिवाद जैसी भयानक बीमारी से ग्रसित था उसी समय देश का दूसरा चेहरा ये भी था कि इस देश में बेटियां रूढ़िवादी प्रथाओं के कारण गुलामी की ज़िंदगी जीती थी, बाल विवाह, पति की मौत के बाद सारी जिंदगी विधवा रहना, संपति से वंचित रहना, तलाक देने के अधिकार से दूर रहना, शिक्षा से दूर रहना, इन सब रूढ़िवादी नियमों से समाज हमेशा से अंधेरों में रहा है, ऐसे समय में हिन्दू कोड बिल देश की बेटियों के एक लिए एक ऐसा हथियार बना था जिसका परिणाम आज सबके सामने है, कि देश के कई ऐसे काम जो देश के बेटे नहीं कर पाएं बेटियों ने किए है.
हिन्दू कोड बिल की तुलना तलाक के नजरिये आप वर्तमान के ट्रिपल तलाक से से कर सकते है जिसके लिए हम मोदी जी की वाहवाही करते है, जिस तरह ट्रिपल तलाक मुस्लिम महिलाओं को तलाक का अधिकार देता है ठीक उसी तरह हिन्दू कोड बिल हिन्दू महिलाओं को तलाक देने का अधिकार देता है, खैर बाबा साहब का इस बिल का विरोध कई रूढ़िवादी हिन्दू संगठनों ने किया था साथ इन विरोधों में उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी शामिल था जो नहीं चाहता था की देश की महिलाएं भी पुरुषों की तरह सामान अधिकार प्राप्त करे, हालाँकि बाद में यह बिल पास भी हुआ लेकिन इसी बिल के कारण बाबा साहब ने कानून मंत्री के अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, बाद में जो बिल पास हुआ था वो कई मायनों में बाबा साहब के बिल से लचीला था.
सिर्फ यही नहीं बाबा साहब के लिखे संविधान की ताकत ही है कि विश्व के बड़े-बड़े देश आज भारतीय संविधान की ताकत को वो महत्व देते है जो शायद हम लोग आज तक नहीं दे पाए. एक इंसान के लिए सबसे जरूरी चीज अगर आज के दौर में है तो वो है आज़ादी और संविधान ने जिस तरह कि आज़ादी हम लोगों को दी है उसी का नतीजा है कि आज हम सोशल मीडिया पर किसी भी बड़े-बड़े से नेता का मर्यादा में रहकर विरोध कर सकते है, इस आजादी को हम लोकतंत्र कहते है, एक ऐसा लोकतंत्र जो जनता की आवाज़ को उठाने में मदद करे और उसे उसकी मंज़िल तक पहुचाएं, खैर मेरे इन तर्कों के अलावा एक 'बाबा साहब सबके नेता है' का तर्क यह भी है कि शनिवार को बाबा साहब की जयंती पर प्रधान साहब बाबा साहब का गुणगान कर रहे थे.