श्यामसुंदर ने करवाया था शक्ति बाहुला मंदिर का निर्माण, यहाँ गिरी था माता रानी का बायां हाथ

श्यामसुंदर ने करवाया था शक्ति बाहुला मंदिर का निर्माण, यहाँ गिरी था माता रानी का बायां हाथ
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नवरात्रि के पर्व चल रहे हैं और इस पर्व के दौरान माता रानी के नौ स्वरूप का पूजन किया जाता है। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं मातारानी के 52 शक्तिपीठों में से एक बहुला चंडिका शक्तिपीठ के बारे में। यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल से वर्धमान जिले से 7 किलोमीटर दूर कटवा के पास केतुग्राम के पास स्थित अजय नदी तट पर स्थित बाहुल स्थान पर है और इसको बहुला चंडिका शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है।

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वहीँ अगर आप रेल मार्ग से यात्रा करना चाहते हैं तो हावड़ा से 145 किलोमीटर दूर पूर्वी रेलवे के नवदीप धाम से 41 किलोमीटर दूर कटवा जंक्शन से केतुग्राम या ब्रह्म गांव में स्थित है। जी दरअसल यहां का नजदीकी हवाई अड्डा वर्धमान है, जबकि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा कोलकाता है। इसके अलावा अगर आप रोड से जाना चाहते हैं तो कोलकाता से कृष्णा नगर व देवग्राम होते हुए भी कटवा पहुंच सकते हैं। कटवा वर्धमान से 56 किलोमीटर दूरी पर है। आपको बता दें कि बहुला चंडिका शक्तिपीठ के भैरव भीरुक हैं और शक्ति बाहुला।

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एक प्रचलित कहानी के अनुसार माता का यह मंदिर 5-6 शताब्दी पूर्व उनके एक परम् भक्त श्यामसुंदर द्वारा निर्मित है, जिसका पुनरुद्धार समय-समय पर यहाँ के राजा, महंत, जमींदार एवं अन्य गणमान्य लोगों ने किया है। जी हाँ और शक्तिपीठ महात्म्य के अनुसार जब श्री विष्णु ने माता सती के जले हुए शरीर का विच्छेदन किया था, तब इस क्षेत्र में माता के बांए भुजा (बाहु) का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति देवी ‘बहुला/बाहुला’ एवं भैरव ‘भीरुक’ के नाम से पूजे जाते हैं। दूसरी तरफ स्थानीय लोग इस शक्तिपीठ को बहुला चंडिका शक्तिपीठ के नाम से जानते हैं। यहाँ माता सती का बायां हाथ गिरा था।

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माता को खुश करने का मंत्र :– ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।। ॐ सर्व मंगल मांगल्यै शिवे सर्वार्थ साधिके शरण्ए त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

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