नई दिल्ली: एक हाथ में जनेऊ और दूजी में तलवार रखने वाले बाजीराव पेशवा कोंकणस्थ ब्राह्मण थे, मगर उनके और मस्तानी के विवाह पश्चात पैदा हुईं संतानें मुसलमान हैं। बाजीराव की 7वीं पीढ़ी के वंशजों बताते हैं कि अगर इतिहास ने एक मोड़ ना लिया होता तो वे सभी आज हिन्दू होते।
कृष्णाजीराव बन गए शमशेर अली बहादुर:-
बाजीराव पेशवा और मस्तानी की प्रेम कहानी को हर मोड़ पर इम्तिहान देना पड़ा था। बाजीराव पक्के ब्राह्मण थे, मगर मस्तानी से विवाह के बाद, उस वक़्त पुणे के ब्रह्मणों का एक बड़ा वर्ग उनके विरुद्ध हो गया था। ये लोग उनसे इतने खफा थे कि उनके और मस्तानी के पुत्र का जनेऊ संस्कार भी नहीं होने दिया। बाजीराव के वंशज जुबेर बहादुर जोश का कहना है कि मस्तानी के पुत्र का नाम कृष्णाजीराव था। उनका लालन-पालन हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार ही हुआ था।
मुस्लिम मां के बेटे का जनेऊ करने पर मचा बवाल:-
कृष्णाजीराव के जनेऊ करवाने बाजीराव ने पंडितों को आमंत्रित किया था, मगर उन्होंने इस पर बवाल मचा दिया। उनका कहना था कि वे मुस्लिम मां से जन्मे बेटे का जनेऊ वे नहीं करवाएंगे। बाजीराव ने उन्हें मनाने का काफी प्रयास किया गया, मगर वे नहीं माने। आखिरकार बाजीराव ने कृष्णाजी राव को अपनी मां का धर्म अपनाने के लिए कहा। इसी के कारण, कृष्णाजी राव शमशेर अली बहादुर बन गए। जोश कहते हैं कि अगर उस वक़्त पंडितों ने कृष्णाजी की जनेऊ करा दी होती, तो हम सब हिन्दू होते।
पूजा भी करती थीं और रोज़ा भी रखतीं थी मस्तानी:-
जोश के अनुसार, मस्तानी की मां मुस्लिम थी, मगर वह महाराजा छत्रसाल के प्रणामी सम्प्रदाय को मानती थीं। इसके प्रवर्तक एक हिन्दू संत ही थे। मस्तानी को भले ही उस वक़्त के पंडितों ने स्वीकार नहीं किया, मगर वे हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति के नायाब मेल की मिसाल थीं। मस्तानी कृष्ण की भक्त थीं और नमाज भी पढ़ती थीं, पूजा भी करती थीं और रोजा भी रखती थीं।
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