मुम्बई म्युनिसिपल से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाला वह शख्स प्रदेश और देश की राजनीती में इतना अहम् हो जाएगा किसी ने सोचा भी नहीं था. उसने विधायक बनाए तो सांसद भी, उसने मेयर बनाए तो मुख्यमंत्री भी. मी मुम्बईकर का नारा लगाकर मराठियों का चहेता बना तो मी हिन्दू की राजनीती कर हिन्दू ह्रदय सम्राट बना. उसके बारे में कहा जाता था कि आप उससे सहमत या असहमत हो सकते हो, लेकिन उसे नजरअंदाज नहीं कर सकते. किसी ने उसे नफरत का खलनायक कहा तो किसी ने नस्लवादी, लेकिन हर बात डंके की चोंट पर कहने वाले उस शख्स ने मुम्बई में ऐसी धाक जमाई कि उसकी मर्जी के बिना वहां एक पत्ता भी नहीं हिलता था. वह शख्स मुम्बई आया तो था कार्टून बनाने, नौकरी करने लेकिन बन गया मुम्बई का किंग. उसके बारे में कोई दावा नहीं कर सकता कि वह उसे अच्छे से जनता है. हम बात कर रहे है हमेशा एक अबूझ पहेली बने रहे शिव सेना नाम की एक प्रखर हिन्दू राष्ट्रवादी दल का गठन करने वाले बालासाहेब केशव ठाकरे की.
बालासाहेब का जन्म 23 जनवरी 1926 को पुणे में प्रबोधन केशव सीताराम ठाकरे के यहाँ हुआ था. 10 भाई-बहनों में बड़े बाल ठाकरे को बचपन से ही कार्टून बनाने का शोक था. केशव ठाकरे ने अपने बेटे के हुनर को पहचाना और उनके हाथ में ब्रश थमा दिया. बाल ठाकरे ने अपनी पढ़ाई अभावों में पूरी की. 21 साल की उम्र में उनकी शादी सरला वैद्य से हुई जो बाद में मीना ताई ठाकरे कहलाई. परिवार का खर्च उठाने के लिए बाल ठाकरे इंग्लिश पेपर में कार्टून बनाते थे. इसी बीच 1960 में महाराष्ट्र में दक्षिण भारतियों को लेकर असंतोष फैलने लगा. मुम्बई के सरकारी दफ्तरों में दक्षिण भारतीयों का बोलबाला था, ऐसे में मराठियों को लगने लगा था कि उनका हक़ उन्हें नहीं मिल रहा था. मराठी युवाओं के मन में लगी इस चिंगारी को सबसे पहले हवा दी बालसाहेब ठाकरे ने.
उन्होंने 1963 में मराठी मैगजीन 'मार्मिक' की शुरुआत की. इस मैगजीन में बालासाहेब महाराष्ट्र में हो रहे मराठियों पर अत्याचार और नाकरियों का मुद्दा उठाते थे. धीरे-धीरे मार्मिक के दफ्तर पर लोगों की भीड़ बढ़ने लगी. बालासाहेब ठाकरे के पिता ने उनसे कहा कि मराठी मानुस के हक़ और अस्मिता की लड़ाई ऐसे नहीं जीती जा सकती है. उसके लिए एक संगठन बनाना होगा और फिर बनी शिवजी की सेना यानि शिव सेना. अपने आत्मविश्ववास के कारण धीरे-धीरे बालासाहेब की साख महाराष्ट्र में बढ़ने लगी, मराठियों को उनका हक़ दिलाने के लिए शिव सेना ने कई लड़ाईया लड़ी. बालासाहेब ठाकरे की खासियत थी कि वह अपने विरोधियों पर पूरी ताकत से हमला करते थे.
उन्होंने वामपंतियों के वर्चस्व ख़त्म करने के लिए कभी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन किया तो कभी कांग्रेस के साथ. इस बीच उन्होंने अपने भतीजे राज ठाकरे को अपने साथ मिला और राज ठाकरे को शिव सेना की युथ विंग भारतीय विद्यार्थी सेना का अध्यक्ष बनाया. 1989 में बाल ठाकरे ने ही शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' की शुरुआत की. हिंदुत्व को अपना हथियार बनाकर बाल ठाकरे बीजेपी के साथ मिलकर राम मंदिर आंदोलन में कूद पड़े. इसका नतीजा यह निकला कि 1995 में महाराष्ट्र में शिवसेना और बीजेपी की सरकार बनी.
पार्टी का वर्चस्व बढ़ता गया तो पार्टी में ही दरार आनी भी शुरू हो गई. खुद को बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी समझने वाले राज ठाकरे को बाल ठाकरे के बड़े बेटे उद्धव ठाकरे से पार्टी अंदर ही चनौती मिलने लगी. साल 2003 में राज ठाकरे को दरकिनार कर उद्धव ठाकरे को शिव सेना का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया. पार्टी में अपनी अनदेखी से नाराज राज ठाकरे ने 2005 में शिव सेना छोड़ी दी. बाल ठाकरे के साये में पले बड़े राज ठाकरे ने 2006 में खुद की पार्टी बनाई.
राज ठाकरे की इस हरकत से बाल ठाकरे को गहरा दुःख पहुंच, जो उन्हें उम्र भर रहा. बाल ठाकरे चाहते थे कि उद्धव और राज ठाकरे मिलकर चुनाव लड़े. उन्होंने कई बार इसका इशारा भी किया, लेकिन दोनों भाइयों के बीच दुरी कम नहीं हुई. इसी बीच 17 नवम्बर 2012 को ठाकरे वंश का सबसे बड़ा पेड़ गिर गया. दिल का दौरा पड़ने से बालासाहेब ठाकरे की म्रत्यु हो गई. उनको अंतिम विदाई देने के लिए पूरा महाराष्ट्र उमड़ पड़ा. हिन्दू ह्रदय सम्राट के जाने से पूरा देश गमगीन हो गया.
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