बुलडोज़र और चुनावी बॉन्ड पर रोक, मदरसा एक्ट को मंजूरी...। 2024 में SC के 6 बड़े फैसले

बुलडोज़र और चुनावी बॉन्ड पर रोक, मदरसा एक्ट को मंजूरी...।  2024 में SC के 6 बड़े फैसले
Share:

नई दिल्ली: साल 2024 का आज अंतिम दिन है, कल से दुनियाभर में नए साल का आगाज़ हो जाएगा। इस साल में  देश-दुनिया में कई तरह के बदलाव हुए कुछ सकारात्मक, तो कुछ नकारात्मक भी। लेकिन, भारत की न्यायपालिका की दृष्टि से 2024 ऐतिहासिक बदलावों का वर्ष रहा है। देश की सर्वोच्च अदालत ने इस साल कई अहम और विवादास्पद मामलों में फैसले सुनाए, जिन्होंने न केवल कानूनी ढांचे को बल्कि देश के राजनीतिक और सामाजिक ढाँचे को भी नया रूप दिया। 

इन फैसलों में चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करना, रिश्वतखोरी से जुड़े मामले में विधायकों की विधायी प्रतिरक्षा को खारिज करना, और मदरसा शिक्षा के विनियमन जैसी महत्वपूर्ण बातें शामिल हैं। इन फैसलों ने संविधान के विभिन्न पहलुओं पर गहरे प्रभाव डाले हैं और कई मुद्दों पर समाज में बहस को हवा दी है।

चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करना:- 

15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया था। इस बॉन्ड से पहले राजनितिक दल अधिकतर नकद में चंदा लिया करते थे, किसको कितना पैसा, किससे मिला? इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती थी। सरकार इसी में पारदर्शिता लाने के लिए चुनावी बॉन्ड योजना लाइ थी, जिसमे दान देने वाला व्यक्ति, बैंक के जरिए दान लेने वाली पार्टी के बॉन्ड खरीदता था और वो पैसा पार्टी के बैंक अकाउंट में जाता था, जिसका हिसाब बैंक और पार्टी के पास मौजूद रहता था और पारदर्शिता भी बनी रहती थी की किस व्यक्ति ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया। 

लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के मौलिक अधिकार का उल्लंघन माना। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि चुनावी बॉन्ड्स के जरिए किए गए गुमनाम दान ने राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को कम किया, जिससे लोकतंत्र कमजोर हुआ। इसके चलते आयकर अधिनियम, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और कंपनी अधिनियम में किए गए संशोधन अमान्य कर दिए गए, जिससे अनियमित और गुमनाम कॉर्पोरेट दान को बढ़ावा मिलता था।

रिश्वतखोरी में विधायक-सांसदों की सुरक्षा खत्म:-

4 मार्च 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के कैश-फॉर-वोट मामले में अपने 1998 के फैसले को पलटa दिया था।  ये फैसला पैसे लेकर वोट बेचने से जुड़ा था, उस समय केंद्र में नरसमीहा राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन जब सरकार अल्पमत में आई, तो संसद में फ्लोर टेस्ट रखा गया। तब कांग्रेस द्वारा 50-50  लाख रुपए नकद देकर JMM के सांसदों के वोट ख़रीदे गए थे। वरना उस समय कांग्रेस सरकार गिर गई होती। तत्कालीन विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपाई ने संसद में इसका भंडाफोड़ किया था, सांसदों ने खुद कबूला था कि कांग्रेस द्वारा उन्हें कारों में भरकर नोट भेजे गए थे। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, लेकिन अदालत ने ये कहते हुए किसी को भी सजा देने से इंकार कर दिया कि रिश्वतखोरी पर सांसदों-विधयकों को सजा देने का कोई कानून नहीं है। 

अब 26 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना ही फैसला पलट दिया है और कहा है कि, सांसदों-विधायकों को रिश्वतखोरी जैसे आपराधिक कृत्यों से छूट नहीं मिल सकती। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि संसदीय विशेषाधिकार केवल विधायी कार्यों तक सीमित हैं और यह भ्रष्टाचार या आपराधिक कृत्य जैसे मामलों को कवर नहीं कर सकते। लेकिन, अब किसे सजा दी जा सकती है, अब तो ना वो नेता रहे, और न वो सांसद। वो अपनी सत्ता भोगकर जा चुके। 

SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर:-

1 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों के भीतर उप-वर्गीकरण की मंजूरी दी, जिसमे क्रीमी लेयर की पहचान कर उन लोगों को लाभ देने की सिफारिश की गई थी, जो आरक्षण के लाभ से वंचित हैं। इसका उद्देश्य इन समुदायों के भीतर असमानताओं को दूर करना था, ताकि सबसे वंचितों को भी लाभ का उचित हिस्सा मिल सके, लेकिन इसके विरोध में SC/ST के ही कुछ समुदाय उतर आए और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने से इंकार कर दिया। 

सियासी जानकारों द्वारा कहा गया कि विरोध करने वाले उस संदुआय के लोग हैं, जो सबसे अधिक आरक्षण का लाभ लेते हैं, और SC/ST की अन्य जातियों को लाभ नहीं देना चाहते। वहीं, जो सचमुच पिछड़े दलित-आदिवासी थे, उन्होंने इस फैसले का समर्थन भी किया और रैलियां निकाली, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला उन्हें हक़ दिलाने वाला था। कोर्ट ने निर्देश दिया कि राज्य सरकारें इन समुदायों के भीतर उप-श्रेणियां बना सकती हैं, ताकि आरक्षण का लाभ अधिक सूक्ष्म रूप से वितरित किया जा सके। अब इस फैसले को लागू करना राज्य सरकारों पर है, जो अपने राज्य की स्थिति के हिसाब से इस पर फैसला लेंगी। 

'बुलडोजर न्याय' पर रोक:-

अपराधियों और अतिक्रमणकारियों पर गरजने वाले बुलडोज़र ने भरत से लेकर दुनियाभर में सुर्खियां बटोरीं थीं। वैसे आम जनता इससे खुश थी, क्योंकि अपराधियों पर हो रहा एक्शन उन्हें भा रहा था। लेकिन, भारत में कुछ नेताओं और धर्मगुरुओं ने इसे इस तरह पेश किया कि बुलडोज़र के जरिए मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। जिसके बाद ये मामला जमकर उछला और जमीयत उलेमा हिन्द की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया। 13 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने उन कार्रवाइयों की कड़ी आलोचना की, जिन्हें 'बुलडोजर न्याय' कहा जाता है। 

सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणियां करते हुए बुलडोज़र कार्रवाई पर रोक लगा दी, हालाँकि, उचित प्रक्रिया के माध्यम से अतिक्रमण हटाने की छूट दी। शीर्ष अदालत ने इसे असंवैधानिक माना और कहा कि ऐसा केवल तभी किया जा सकता है जब कानून के तहत उचित प्रक्रिया अपनाई जाए। यह फैसला खासकर उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में हुईं ऐसी कार्रवाइयों के संदर्भ में था, जहां अवैध रूप से निर्मित ढांचे बुलडोज़र से जमींदोज़ किए गए  थे।

नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिकता पर मुहर:- 

CAA कानून आने के समय से ही पूरा विपक्ष एक सुर में इसे असंवैधानिक बता रहा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसका भी फैसला कर दिया। अक्टूबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम (CAA) की धारा 6ए की संवैधानिकता को कायम रखा, जो असम में बांग्लादेश से आए प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करता है। अदालत ने इस प्रावधान को असम की जनसांख्यिकीय समस्याओं और ऐतिहासिक संदर्भ को ध्यान में रखते हुए सही ठहराया।

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को रखा बरक़रार:-  

5 नवंबर 2024 को सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को संवैधानिक करार देते हुए इसकी वैद्यता को बरक़रार रखा। हालांकि, इलाहबाद हाई कोर्ट ने इसे पहले असंवैधानिक मानते हुए रद्द कर दिया था, पर सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया। कोर्ट ने इस निर्णय को पलटते हुए कहा कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि राज्य सरकार के पास विधायी क्षमता है तो ही कोई कानून रद्द किया जा सकता है। दरअसल, इसका विरोध करते हुए कहा गया था कि, मदरसा बोर्ड बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में नाकाम रहा है, इसलिए बच्चों को मदरसों से निकालकर सामान्य स्कूलों में भर्ती कराया जाए, जहाँ वे अच्छी तालीम ले सकें। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को नहीं माना।  

सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों ने भारत के न्यायिक और संवैधानिक ढांचे को नए आयाम दिए हैं और समाज में महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा को बढ़ावा दिया है। इन निर्णयों ने कानूनी प्रक्रियाओं की स्पष्टता और पारदर्शिता को सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। देश को उम्मीद है कि आगामी नववर्ष में भी भारत की न्यायपालिका जनहित में फैसले करती रहेगी।  

Share:

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
- Sponsored Advert -