ढाका: बांग्लादेश में हिंदुओं के प्रति नफरत की वजह से उन पर और उनके पूजास्थलों पर हमले की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं। शुक्रवार (7 अक्टूबर) को इस्लामी कट्टरपंथियों ने एक बार फिर एक काली मंदिर पर हमला कर प्रतिमाओं को खंडित कर दिया। मूर्ति के टुकड़े को आधा किमी दूर फेंक दिया। बांग्लादेश के झेनैदाह जिले के अंतर्गत आने वाले दौतिया गाँव में एक ब्रिटिशकालीन एक काली मंदिर स्थित है। शुक्रवार को इस्लामी कट्टरपंथी मंदिर में घुसे और मूर्ति का सिर तोड़ दिया और उसे ले जाकर करीब आधा किलोमीटर दूर सड़क पर फेंक दिया। इस मामले में अभी तक किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया है। वहीं, पुलिस का कहना है कि वह मामले की छानबीन कर रही है।
मंदिर समिति के प्रमुख सुकुमार कुंडा ने बताया है कि इस मंदिर में अंग्रेजों के जमाने से पूजा होती आ रही है। वहीं, कुछ दिनों से मंदिरों पर बढ़े हैं, फिर भी इस मंदिर में सुरक्षा व्यवस्था का कोई प्रबंध नहीं किया गया था। कुंडा ने कहा कि सुबह 3-4 बजे के हमलावर मंदिर में घुसे और सुरक्षा व्यवस्था नहीं होने की वजह से बिना किसी डर के प्रतिमाओं को खंडित कर गए। उन्होंने कहा कि इस हमले में किसी व्यक्ति को क्षति नहीं पहुँची है। हमले की सूचना पुलिस को दी गई है। बांग्लादेश पूजा सेलिब्रेशन काउंसल के मुख्य सचिव और ढाका यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर चंदनाथ पोद्दार ने बताया है कि बांग्लादेश में 10 दिवसीय दुर्गा पूजा समाप्त होने के 24 घंटे के भीतर यह घटना हुई है। झेनैदाह के ASP अमित कुमार बर्मन ने बताया है कि इस मामले में FIR दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी गई है। अज्ञात लोगों के खिलाफ सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है।
बता दें कि, गत वर्ष भी दुर्गा पूजा के दौरान चाँदपुर जिले में इस्लामी कट्टरपंथियों की भीड़ ने हिंदू मंदिर पर हमला कर प्रतिमाओं को खंडित कर दिया था। इसके साथ ही 3 हिन्दुओं को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया था। इस हमले के बाद बांग्लादेश हिंदू यूनिटी काउंसिल ने पीएम शेख हसीना से अल्पसंख्यक समुदाय को सुरक्षा मुहैया कराने की माँग की थी। मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमला होना सामान्य बात हैं। यही नहीं, वहाँ से आए दिन नाबालिग हिंदू लड़कियों के अपहरण और बलात्कार के मामले भी सामने आते रहते हैं। लगातार प्रताड़ना के कारण बांग्लादेश में हिंदुओं की तादाद घटती जा रही है। वहाँ की 16.9 करोड़ की कुल आबादी में हिंदुओं की तादाद लगभग 10 फीसदी है और ये संख्या लगातार कम हो रही है। लेकिन, बांग्लादेश के पीड़ित अल्पसंख्यकों के लिए कोई मानवाधिकार या शांति संगठन आवाज़ उठाने के लिए तैयार नहीं है, यहाँ तक कि ट्विटर पर बांग्लादेशी हिन्दुओं की पीड़ा दिखाने वाले हैंडल्स को ट्विटर खुद डिलीट कर देता है।
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