ढाका: बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद देश में भारत-विरोधी भावनाएं तेज़ी से बढ़ रही हैं, और पाकिस्तान के साथ संबंधों को फिर से मजबूत करने की मांग जोर पकड़ रही है। हाल ही में ढाका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शाहिदुज्जमां ने एक बयान में पाकिस्तान के साथ परमाणु समझौते की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है, जिससे भारत को एक बड़े खतरे के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उनका कहना है कि बांग्लादेश को परमाणु सक्षम बनना चाहिए, हालांकि इसका मतलब परमाणु शक्ति बनना नहीं है, बल्कि पाकिस्तान के साथ एक परमाणु संधि करके भारत को रोकना है।
शाहिदुज्जमां ने पाकिस्तान को बांग्लादेश का "सबसे विश्वसनीय और भरोसेमंद सुरक्षा सहयोगी" बताया और कहा कि भारत के खिलाफ कार्रवाई के लिए पाकिस्तान की तकनीकी मदद ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से मिसाइलें लेकर उन्हें उत्तर बंगाल और चटगांव के पहाड़ी इलाकों में तैनात किया जाए, जिससे भारत पर दबाव बनाया जा सके। इसके साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि भारत बांग्लादेश के कुछ हिस्सों पर कब्जा करके उन्हें अपने पूर्वोत्तर राज्यों में मिलाने की योजना बना रहा है, जिसे रोकने के लिए पाकिस्तान की मदद की आवश्यकता है।
“We have to develop a Nuclear Treaty with Pakistan. Pakistan is the most reliable and trustworthy security ally of Bangladesh. This is exactly what the Indians don't want us to believe.”
— Fidato (@tequieremos) September 14, 2024
~ Professor Shahiduzzaman, Dhaka University while addressing military officers at a seminar pic.twitter.com/gfAeZrTJcj
प्रोफेसर शाहिदुज्जमां ने ये बयान सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों द्वारा आयोजित एक सेमिनार में दिया, जहां उन्होंने भारत को बांग्लादेश के लिए बड़ा खतरा बताया और पाकिस्तान को बांग्लादेश का सच्चा सहयोगी कहा। उन्होंने यह भी बताया कि पाकिस्तान, बांग्लादेश की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। इसके अलावा, बांग्लादेश में इस्लामी ताकतें पाकिस्तान के साथ भाईचारा बढ़ाने की कोशिश में हैं। हाल ही में ढाका में जिन्ना की 76वीं पुण्यतिथि मनाई गई, जिसमें उर्दू गीत और कविताओं का प्रदर्शन किया गया। वक्ताओं ने जिन्ना की प्रशंसा करते हुए कहा कि पाकिस्तान के बिना बांग्लादेश का अस्तित्व भी नहीं होता। यह पहली बार है जब बांग्लादेश में इस तरह का कार्यक्रम हुआ है।
यह विडंबना है कि बांग्लादेश, जो कभी पाकिस्तान के खिलाफ अपने बंगाली भाषी गौरव के लिए लड़ा था, अब उन्हीं ताकतों की ओर आकर्षित हो रहा है जिन्होंने उनके पूर्वजों का नरसंहार किया था। जमात-ए-इस्लामी जैसी इस्लामी ताकतों ने शेख हसीना सरकार के पतन के बाद देश में प्रभाव बढ़ाया है और उर्दू को फिर से प्राथमिकता दी जा रही है, जो कभी बांग्लादेश के लिए विदेशी और नकारात्मक भाषा मानी जाती थी।
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