आज बरसाना में खेली जाएगी लट्ठमार होली, जानिए परम्परा

आज बरसाना में खेली जाएगी लट्ठमार होली, जानिए परम्परा
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होली की शुरुआत हो चुकी हैं. ऐसे में आज नंदगांव के ग्वालों ने बरसाना की सखियों से लठामार होली का निमंत्रण क्या स्वीकार किया और लाड़िली जी मंदिर में खुशी में लड्डुओं की बरसात कर होली खेली गई. बीते गुरुवार को लड्डू होली का श्रद्धालुओं ने भरपूर आनंद उठाया और आज बरसाना में विश्वप्रसिद्ध लठामार होली खेली जाएगी. जी हाँ, आज इस होली को देखने के लिए देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु बरसाना पहुंच गए हैं और सभी ने जमकर एन्जॉय किया. आप सभी को यह भी बता दें कि बरसाने की विश्व प्रसिद्ध लठामार होली में नंदगांव के ग्वालों द्वारा बरसाने की सखियों के साथ होली खेलने की कृष्णकालीन परंपरा है.

कहा जाता है परंपरा के अनुसार ''एक दिन पहले बीते कल यानी गुरुवार को राधारानी के गांव बरसाना से लाडिलीजी की दर्जनभर सखियां सुबह 11 बजे ढोल-नगाड़ों संग नंदभवन पहुंचीं और यहां पहले से पलक पांवड़े बिछाए ग्वालों ने सखियों का चुनरी ओढ़ाकर स्वागत किया। इसके बाद गोस्वामीजनों का समूह सखियों को कन्हैया के निज महल की ओर ले गया। मंदिर के अंदर पहुंचकर सखियों ने फाग का निमंत्रण रूपी गुलाल एवं लाडली जी की भेंट कन्हैया के श्री चरणों में अर्पित करने के लिए सेवायतों को सौंपी। इसके बाद सखियों ने कन्हैया से कहा कि कल (शुक्रवार) को आप अपने सखाओं को लेकर लठामार होली के लिए बरसाना आमंत्रित हैं। यह निमंत्रण सुन गोप और ग्वाले खुशी से झूम उठे। उन्होंने एक-दूसरे को बधाई दी। उधर, सेवायतों ने लाडलीजी की भेजी गुलाल की हांडी कन्हैया के श्रीचरणों में रखी और सखियों का आग्रह सबको सुनाया। इसके बाद सेवायतों ने सखियों का प्रतिनिधित्व कर रही राधा सखी को कन्हैया का प्रसादी रूपी लड्डू व इत्र आदि भेंट किया। ग्वाल-बाल बरजोरी करते हुए सखियों को जगमोहन तक लाए। यहां पहले से सजे-धजे तैयार बैठे गोप व ग्वालों ने होली के रसियाओं पर जमकर नचाया। सखियां भी कहां हारने वाली थीं, चार-चार ग्वालों पर एक-एक सखी नृत्य में भारी पड़ रही थी। एक ओर जहां ग्वाल और गोपों का निमंत्रण पाकर उत्साह दुगना था, वहीं सखियां भी रसिया की इस होली में हार कर लाडलीजी धाम लौटना नहीं चाहती थीं.''

आप सभी को बता दें कि यह परम्परा काफी पुरानी है और आज भी चल रही है. इस दौरान रसिया और नृत्य में एक-दूसरे को पराजित करने की होड़ में करीब साढ़े तीन घंटे तक यह धूम मचती है और श्रोता और दर्शक बने भक्तों ने भी सखियों और ग्वालों की प्रतिस्पर्धा का जमकर आनंद उठाने में मग्न रहते हैं.

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