नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन के कारण प्राचीन पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना इंसानों के लिए एक नया खतरे के आने का संकेत है। वैज्ञानिकों ने बोला है कि उन्हें दो दर्जन से अधिक वायरस मिले हैं, जिनमें से एक झील के नीचे जमा हुआ था और वह तकरीबन 48,500 साल से ज्यादा पुराना है। यूरोप के वैज्ञानिकों को रूस के साइबेरिया क्षेत्र के पर्माफ्रॉस्ट से कुछ सैंपल भी पाए गए है, जिनका उन्होंने परीक्षण किया है। वैज्ञानिकों ने 13 नए पैथोजेन को पुनर्जीवित किया और उनकी खासियत भी बता दी है। इनको जॉम्बी वायरस नाम दिया गया है। रिसर्चर्स के मुताबिक, जमी हुई बर्फ में कई हजार साल तक रहने के बावजूद वे संक्रामक बन चुके है।
वैज्ञानिकों ने लंबे वक़्त से चेतावनी दी हुई है कि एटमॉस्फेरिक वार्मिंग की वजह से पर्माफ्रॉस्ट से पिघलने से मीथेन जैसी पहले से फंसी हुई ग्रीनहाउस गैसें बाहर आने वाली है और इससे पर्यावरण और खराब हो सकता है। लेकिन सुप्त पैथोजेन्स पर इसके असर के बारे में जानकारी अभी कम है।
रूस, जर्मनी और फ्रांस की रिसर्च टीमों ने बोला है कि उनके रिसर्च किए वायरस को पुनर्जीवित करने का जैविक जोखिम पूरी तरह जीरो था क्योंकि उन्होंने टारगेट ही ऐसे स्ट्रेन को किया था। खासकर वे जो अमीबा माइक्रोब्स को संक्रमित कर चुके है। एक वायरस जो जानवरों या इंसानों को संक्रमित कर सकता है, वह बहुत ज्यादा परेशानी वाली चीज है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि खतरे को वास्तविक दिखाने के लिए उनके काम को अलग भी कर सकते है।
पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से बढ़ेगा खतरा: उन्होंने प्रीप्रिंट रिपॉजिटरी बायोरेक्सिव पर पोस्ट किए गए एक आर्टिकल में लिखा, 'हो सकता है कि प्राचीन पर्माफ्रॉस्ट पिघलने के बाद इन वायरस को रिलीज कर सकते है'। फिलहाल इस आर्टिकल की समीक्षा नहीं हुई है। जिसमे बोला गया, 'बाहरी स्थितियों में आने के उपरांत एक वायरस कितने समय तक इन्फेक्शन फ़ैल रहा है, इनको कैसे रोका जा सकता है और एक अंतराल में कोई शख्स कितनी बार संक्रमित हो सकता है इसका अनुमान लगाना अभी भी असंभव है।' उन्होंने कहा, 'लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग के मामले में यह रिस्क उस समय बढ़ता जाएगा जब पर्माफ्रॉस्ट पिघलती चली जाएगी और अधिक से अधिक लोग इंडस्ट्रियल वेंचर्स के कारण आर्कटिक को आबाद करेंगे।'
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