कोई भी व्यक्ति जब मंदिर जाता है तो वह कई प्रकार की पूजन सामग्री अपने साथ लेकर जाता है जो कि वह अपने आराध्य देव को अर्पित करता है, किन्तु पूजन सामग्री में कई वस्तुएं ऐसी होती है जो किसी विशेष देवता को चढ़ाना वर्जित होता है जैसे भगवान् गणेश को तुलसी नहीं चढ़ाई जाती. उसी प्रकार भगवान् शिव को भी केवड़े का फूल अर्पित नहीं किया जा सकता. आइये जानते है इसके पीछे क्या कारण है?
यह बात उस समय की है जब इस स्रष्टि का प्रारंभ हुआ था तब श्रेष्ठता को लेकर भगवान् विष्णु व ब्रहमदेव में विवाद हो गया दोनों ही अपने आप को सर्वश्रेठ घोषित करना चाहते थे जिसमे ब्रह्मा जी का मानना था की उन्होंने स्रष्टि का निर्माण किया है इस कारण से वह श्रेष्ठ है लेकिन विष्णु जी के द्वारा वह स्रष्टि का पालन करते है इसलिए वह श्रेष्ठ है. जब दोनों के बीच में मतभेद चल रहा था उसी समय वहां एक अग्नि रुपी शिवलिंग प्रकट हो गया.
तब दोनों ने इस विवाद पर विवाद लगाते हुए कहा की जो भी सबसे पहले इस शिवलिंग के छोर का पता लगाएगा वही सर्वश्रेष्ठ माना जाएगा.इतना कहकर दोनों उस शिवलिंग के छोर का पता लगाने के लिए निकल पड़े कुछ समय बाद दोनों ही निराश होकर वापस लौट आये. लेकिन ब्रह्म जी ने एक केवड़े का फूल दिखाते हुए कहा की मुझे इसका छोर मिल गया और उसका प्रमाण उनके हांथो में रखा वह केतकी अर्थात केवड़े का फूल है,
ब्रह्मा देव के इस असत्य कथन को सुनकर वहां भगवान् शिव प्रकट हुए और ब्रह्मा जी के असत्य कथन पर खेद व्यक्त किया और उस केवड़े के फूल को दण्ड देते हुए श्राप दिया की आज से मेरी पूजा में इस फूल का उपयोग नहीं किया जाएगा. तभी से भगवान् शिव को केवड़े का फूल नहीं चढ़ाया जाता.
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