2 जनवरी 1492 का दिन इतिहास में एक ऐसी कहानी लेकर आया, जिसने न केवल स्पेन को बल्कि दुनिया को भी यह दिखा दिया कि अपनी मातृभूमि के लिए संघर्ष क्या मायने रखता है। स्पेन, जो शुरू से ही ईसाई धर्म का गढ़ था, 8वीं शताब्दी में अरब और उत्तरी अफ्रीकी मुस्लिम सेनाओं (मूर) के आक्रमण के बाद एक नए अधिपत्य में चला गया। मुस्लिम शासकों ने स्पेन पर शासन करना शुरू किया, ठीक वैसे ही जैसे भारत में विदेशी आक्रमणकारी आए और यहां राज किया।
मुस्लिम शासन के दौरान स्पेन ने दमन, अत्याचार और सांस्कृतिक अतिक्रमण का सामना किया। उन्होंने न केवल सत्ता पर कब्जा किया बल्कि स्पेन के मूल निवासियों को धर्मांतरण के लिए मजबूर करने की भी कोशिश की। मगर, जहां भारत में ऐसी घटनाओं के बाद हिंदुओं ने सब सहते हुए भी सहिष्णुता का परिचय दिया, वहीं स्पेन के ईसाई शासकों और वहां की जनता ने इस दमन के खिलाफ एकजुट होकर विद्रोह किया।
15वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक स्पेन के ईसाई राजा फर्डिनांड और रानी इसाबेला ने ठान लिया था कि वे अपने देश को इन विदेशी शासकों के कब्जे से मुक्त कराएंगे। सालों तक चली इस लड़ाई के बाद 2 जनवरी 1492 को ग्रेनाडा, जो मूरिश साम्राज्य का आखिरी गढ़ था, ने भी हार मान ली। मूरों के अंतिम शासक राजा बोआब्दिल ने आत्मसमर्पण कर दिया, और स्पेन पूरी तरह ईसाई राष्ट्र बन गया।
इसके बाद स्पेन के शासकों ने ऐसा कदम उठाया जिसने इतिहास में उनकी पहचान को स्थायी बना दिया। उन्होंने मुसलमानों को दो विकल्प दिए—या तो वे ईसाई धर्म स्वीकार करें या फिर देश छोड़ दें। 1502 में सभी मुसलमानों को जबरन ईसाई बनाने का आदेश जारी किया गया। जो लोग इन आदेशों का पालन नहीं कर सके, उन्हें मार दिया गया या निर्वासित कर दिया गया। 1609 तक बचे हुए मुसलमानों को भी देश से बाहर कर दिया गया, और स्पेन ने यह सुनिश्चित कर लिया कि दोबारा वहां विदेशी ताकतें उनके अस्तित्व को चुनौती न दें।
स्पेन का यह संघर्ष भारत के इतिहास से मिलती-जुलती कहानी है, लेकिन एक बड़ा फर्क है। भारत में भी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने बर्बरता और लूटपाट के साथ शासन किया। उन्होंने यहां के मंदिरों को तोड़ा, संस्कृति पर हमला किया, और स्थानीय निवासियों को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया। लेकिन जब भारत आजाद हुआ, तब यहां के लोगों ने उसी मुसलमान समुदाय के साथ सहिष्णुता और भाईचारे का व्यवहार किया। किसी को जबरदस्ती धर्म बदलने को नहीं कहा गया, न ही उन्हें उनके देश से बाहर निकाला गया। यह भारत की सहिष्णुता और विविधता को दर्शाता है।
स्पेन का इतिहास यह बताता है कि जब एक राष्ट्र की अस्मिता पर हमला होता है, तो लोग किस तरह अपने अधिकारों के लिए खड़े होते हैं। वहीं भारत का इतिहास यह दिखाता है कि सहिष्णुता और शांति कैसे किसी देश की ताकत बन सकती है। दोनों ही कहानियां दुनिया के लिए महत्वपूर्ण सबक हैं।