पटना: पटना उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि B.Ed डिग्री धारकों को राज्य में प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के रूप में नियुक्ति के लिए योग्य नहीं माना जा सकता है। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति राजीव रॉय की खंडपीठ ने कहा कि प्राथमिक शिक्षा में डिप्लोमा वाले उम्मीदवार प्राथमिक विद्यालय शिक्षण नौकरियों के लिए पात्र हैं। मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति राजीव रॉय की खंडपीठ ने कहा कि, 'रिट याचिकाओं को इस निष्कर्ष के साथ स्वीकार किया जाता है कि 'एनसीटीई' द्वारा जारी दिनांक 28.06.2018 की अधिसूचना अब लागू नहीं है और बीएड उम्मीदवारों को प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र नहीं माना जा सकता है।'
हाई कोर्ट ने कहा कि, 'यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि की गई नियुक्तियों पर फिर से काम करना होगा और वर्ष 2010 की 'NCTE' की मूल अधिसूचना के अनुसार योग्य उम्मीदवारों को केवल उसी पद पर जारी रखा जा सकता है जिस पर उन्हें नियुक्त किया गया है। राज्य यह भी निर्णय लेगा कि क्या इस तरह के पुनर्निर्धारण से रिक्त होने वाले पदों को प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र उम्मीदवारों से राज्य के पास उपलब्ध मेरिट सूची से भरा जाएगा।' याचिकाकर्ताओं ने राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) की 28 जून, 2018 की अधिसूचना की वैधता को चुनौती दी थी, जिसमें बीएड डिग्री रखने वाले व्यक्तियों के लिए प्राथमिक विद्यालय शिक्षण पदों की अनुमति दी गई थी।
हाल के एक आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला था कि केवल प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा धारक ही प्राथमिक विद्यालय शिक्षण भूमिकाओं के लिए उपयुक्त हैं। शीर्ष अदालत ने कहा था कि बीएड डिग्री वाले व्यक्तियों में बच्चों के साथ प्रभावी ढंग से जुड़ने के लिए आवश्यक शैक्षणिक कौशल का अभाव है। नतीजतन, शीर्ष अदालत ने NCTE की 2018 की अधिसूचना को अमान्य कर दिया, जिसमें प्राथमिक शिक्षकों के लिए बी.एड योग्यता निर्दिष्ट की गई थी। इसके बाद उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि, "संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बंधे हैं और राज्य सरकार भी।"