आप सभी जानते ही हैं कि रामायण एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें भाईयों का आपस का प्रेम देखते ही बनता है और रामयाण पढ़ने में सभी को आनंद आता है. रामायण में जब अपनी सौतेली मां कैकयी के कहने पर राम को राजपाठ त्यागना पड़ता है तो वे बिना सोच समझे अपने भाई भरत के लिए राजपाठ छोड़कर वन में जाने को तैयार हो जाते हैं और जब भरत अपने ननिहाल से लौटकर आते हैं तो वे अयोध्या के राजपाठ को स्वीकारते नहीं है और राम की तलाश में जुट जाते हैं. वहीं भाई लक्ष्मण तो सब छोड़कर श्रीराम के साथ वन गमन करते हैं. आप सभी देख सकते हैं भाईयों में आपस में इतना प्रेम कहीं और आज के जमाने में देखने को मिलता ही नहीं है. लेकिन क्या आप सभी ने कभी सोचा है इतना प्यार होने पर भी आखिर क्यों राम को अपने ही भाई लक्ष्मण को मृत्युदंड की सजा सुनानी पड़ी थी. जी हाँ, अगर आप इस बारे में नहीं जानते हैं तो आइए आज हम आपको बताते हैं इससे जुडी रोचक कथा के बारे में.
पौराणिक कथा - जब एक बार यमदेव सन्यासी वेश में भगवान राम से मिलने आए तो उन्होंने श्री राम से कहा कि हम दोनों के बीच जो बात होगी वो कोई सुने नहीं, मुझे आप से यह वचन चाहिए कि यदि हमारी इस गोपनीय बातचीत के बीच में किसी ने भी व्यवधान डाला तो आप उसे प्राणदंड देंगे. भगवान राम ने यमदेव को यह वचन दे दिया और ये सोचकर की पहरेदार किसी को अंदर आने से नहीं रोक पाएगा, इसी कारण इस समस्या का हल निकालते हुए उन्होंने उस पहरेदार को वहां से हटा दिया और उसके स्थान पर लक्ष्मण को नियुक्त कर दिया और उन्हें निर्देश दिया कि कितनी भी महत्वपूर्ण बात क्यों ना हो किसी को भी प्रवेश मत करने देना.
जब यमदेव भगवान राम से बात कर रहे थे, उसी समय महर्षि दुर्वासा भगवान राम से मिलने के लिए अयोध्या पहुंचे. जब उन्होंने लक्ष्मण से अंदर जाने को कहा तो लक्ष्मण ने मना कर दिया. यह सुनकर महर्षि दुर्वासा क्रोधित हो गए और उन्होंने कहा कि यदि तुमने मुझे अंदर नहीं आने दिया तो मैं संपूर्ण अयोध्यावासियों को भस्म करने का श्राप दे दूंगा. यह सुनकर लक्ष्मण अयोध्यावासियों को श्राप से बचाने के लिए भगवान राम के पास दुर्वासा ऋषि का संदेश लेकर पहुंचे. लक्ष्मण के अंदर पहुंचते ही यमदेव अदृश्य हो गए और भगवान राम को न चाहते हुए वचन के पालन के लिए अपने प्राणों से प्रिय लक्ष्मण को मृत्युदंड देना पड़ा.
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