कृष्ण कृपामूर्त श्रीमद् ए.सी. भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद का जन्म 1896 ई. में कोलकाता में हुआ था। वहीँ उनकी मृत्यु 14 नवंबर 1977 में हुई थी। श्री प्रभुपाद ने श्रीमद् भगवद्गीता पर एक टीका लिखी और गौड़ीय मठ के कार्य में सहयोग दिया। वह श्री कृष्णा के परम भक्त थे और आज हम आपको बताने जा रहे हैं उनके अनमोल विचार।
* यदि आप हीरे बेचते हैं, तो आप ज्यादा ग्राहक होने की उम्मीद नहीं कर सकते। लेकिन एक हीरा एक हीरा ही रहेगा, भले ही कोई ग्राहक न हो।
* सभी ज्ञान की शुरुआत विनम्रता से होती है।
* किताबें आधार हैं; पवित्रता बल है; उपदेश सार है; उपयोगिता सिद्धांत है।
* धर्म मतलब ईश्वर को जानना, उससे प्यार करना।
* जो अपने भीतर प्रसन्न है, सक्रिय है, आनंदित है और प्रकाशमान है, वहीं वास्तव में मुक्त है।
* इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आप हिंदू है, मुस्लिम हैं या ईसाई है। ज्ञान तो ज्ञान है। जहां कहीं मिल जाए, ग्रहण कर लेना चाहिए।
* वांछित मिलने पर खुश नहीं होना चाहिए और अवांछनीय मिलने पर व्यथित नहीं होना चाहिए, क्योंकि ऐसी भावनाएं केवल मन द्वारा बनाई गई हैं।
* एक पाखंडी होने की तुलना में एक नास्तिक होना बेहतर है।
* हमारा काम केवल ईश्वर से प्रेम करना है, ना कि अपनी आवश्यकताओं के लिए ईश्वर की पूजा करना।
* दर्शन(Philosophy) के बिना धर्म भावना है, या कभी-कभी कट्टरता है, जबकि धर्म के बिना दर्शन मानसिक अटकलें(Mental Speculation) हैं।
* अगर आप कुछ लाभ के लिए ईश्वर की सेवा करते हैं तो यह व्यवसाय हैं, प्रेम नहीं।
* जीभ के स्वाद के लिए जानवरों की हत्या अज्ञानता का सबसे बड़ा प्रकार है
* अपने आप को कभी अकेला ना समझें ईश्वर हमेशा आपके साथ है
* अपना ध्यान परमपिता पर ही रखने और उससे प्रेम करने की कला को ही चेतना कहते हैं।
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