आध्यात्म की राह के जरिये दुसरो के जीवन को रोशन करने का काम करने वाले भय्यूजी महाराज ने मंगलवार को खुदकुशी कर ली. खुदकुशी से पहले लिखा- 'बहुत ज्यादा तनाव में हूं, छोड़ कर जा रहा हूं.' इसके बाद भय्यूजी ने अपनी बंदूक से खुद को गोली मार ली. मगर लक्जरी लाइफ जीने वालो में या हाई प्रोफाइल लोगों में शामिल लोगों में शामिल भय्यू जी महाराज अकेले नहीं है जिन्होंने जीने से ज्यादा मौत को सरल समझा. हाल ही में मुंबई के सुपरकॉप कहे जाने वाले हिमांशु रॉय, यूपी एटीएस के अफसर राजेश साहनी ने भी मौत को गले लगाना आसान समझा. हिमांशु रॉय ने 12 मई को मुंबई में अपने घर में खुद को गोली मार ली तो वहीं राजेश साहनी, 29 मई को उनके दफ्तर में मृत मिले.
ये मौते अपने पीछे कई सवाल छोड़ गई है. हत्या, आत्महत्या, सियासत, धन सम्पति, रंजिश जैसे सवालों के बीच एक और सवाल है. जब एक परिपक्व दिमाग का इंसान अवसाद का इस कदर शिकार हो रहा है तो आम जन का क्या होता होगा. या आम जन अपनी जिंदगी के अभावों में भी खुली सांसो का धनि है, मगर आलिशान जीवन जीने वाली बड़ी हस्तियां जिनके पास जीवन के तमाम ऐशो आराम है मगर नहीं है तो सुकून भरी सांसे. राजनीति, फिल्म, खेल, व्यापर जगत से जुडी कई हस्तियां इस तरह से दुनिया को अलविदा कह चुकी है. मगर हर बार पीछे छूट जाता है एक सवाल कि आखिर अवसाद इतना हावी हो जाता है क्या कि जीने से ज्यादा मरना आसान लगने लगे.
अवसाद है क्या ''मुश्किलें जब जिंदगी जीने में इतनी तकलीफ देने लगे की मौत जीने से ज्यादा आसान महसूस हो, तब मौत और जिंदगी के बीच के सबसे कठिन लम्हों का नाम है अवसाद मगर दोस्तों...किसी ने खूब कहा है ''बरसों पहले खोई थी वो पूंजी मिल गई,दरियां में जो फेंकी थी वो नेकी मिल गई, एक समय था खुदकुशी करने को आमादा थी नाकामी मेरी ,फिर क्या था के दिवार पर चढ़ती हुई एक चींटी मिल गई .
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