8 फरवरी को है भीष्म अष्टमी, जानिए क्यों मिला था इच्छा मृत्यु का वरदान

8 फरवरी को है भीष्म अष्टमी, जानिए क्यों मिला था इच्छा मृत्यु का वरदान
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आप सभी को बता दें कि कल यानी 8 फरवरी को भीष्म अष्टमी है। ऐसे में आप सभी जानते ही होंगे महाभारत के युद्ध के बारे में। जी दरअसल कौरव और पांडवों के बीच कुरुक्षे‍त्र में हुआ ये युद्ध 18 दिनों तक चला था। कहा जाता है इस युद्ध में पहले 10 दिनों तक कौरवों की ओर से भीष्म पितामह सेनापति थे और 10वें दिन अर्जुन ने शिखंडी को ढाल बनाकर भीष्म पर तीरों की वर्षा कर दी। उस समय अर्जुन के तीरों से छलनी होकर भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर आ गए। हालाँकि भीष्म पितामह की मृत्यु नहीं हुई, क्योंकि उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। जी हाँ और उन्होंने अपनी देह का त्याग करने के लिए उत्तरायण का इंतजार किया था। आप सभी को बता दें की माघ माह की अष्टमी के दिन उन्होंने अपनी देह का त्याग किया था। इस बार भीष्म अष्टमी 8 फरवरी दिन मंगलवार को है तो हम आपको बताते हैं उस समय की कथा जब भीष्म पितामह को मिला था इच्छा मृत्यु का वरदान।

पौराणिक कथा- भीष्म पितामह राजा शांतनु और देवी गंगा के पुत्र थे। उनके जन्म के बाद देवी गंगा ने उन्हें देव व्रत नाम दिया गया था। देव व्रत ने महर्षि पशुराम से शास्त्र विद्या प्राप्त की, जिसके बाद देवी गंगा देव व्रत के उनके पिता राजा शांतनु के पास ले गईं थीं। राजा शांतनु ने देव व्रत को हस्तिनापुर का राजकुमार घोषित कर दिया। कुछ दिन गुजरने के बाद राजा शांतनु को सत्यवती नाम की एक एक स्त्री से प्यार हो गया और उन्होंने उनसे विवाह करने का मन बना लिया, लेकिन सत्यवती के पिता ने राजा शांतनु से विवाह करने के लिए एक शर्त रख दी। शर्त के मुताबिक राजा शांतनु और उनकी बेटी सत्यवती का पुत्र ही हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बनेगा तभी वह अपनी बेटी का हाथ राजा शांतनु के हाथ में देंगे।

अपने पिता पर आए इस धर्म संकट को देखते हुए देव व्रत ने पिता के प्यार की खातिर अपना राज्य त्याग कर पूरे जीवन शादी ना करने का प्रण ले लिया था,और ऐसे भीष्म प्रण और प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत का नाम भीष्म हो गया। यह सब देखने के बाद राजा शांतनु अपने बेटे से प्रसन्न हुए और उनको इच्छा मृत्यु का वरदान दिया। वक्त के साथ-साथ हस्तिनापुर के उत्तराधिकारी बड़े हो गए। कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध हुआ। महाभारत के इस युद्ध में भीष्म पितामह ने अपना कर्तव्य निभाते हुए कौरवों का साथ दिया। भीष्म पितामह ने पूरी निष्ठा के साथ युद्ध में कौरवों की तरफ से युद्ध किया। इस युद्ध में पहले 10 दिनों तक कौरवों की ओर से भीष्म पितामह सेनापति थे।

10वें दिन अर्जुन ने शिखंडी को ढाल बनाकर भीष्म पर तीरों की वर्षा कर दी। अर्जुन के तीरों से छलनी भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर आ गए। कहा जाता है जो भी जातक सूर्य उत्तरायण के दिन अपना शरीर छोड़ता है, उस जातक को मोक्ष मिलता है, इसी कारण से उत्तरायण के दिन भीष्म अष्टमी मनाई जाती है।

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