भोपाल गैस त्रासदी: पीड़ितों को नहीं मिली राहत ! SC ने कहा- पहले आना था, 30 साल बाद क्यों आए ?

भोपाल गैस त्रासदी: पीड़ितों को नहीं मिली राहत ! SC ने कहा- पहले आना था, 30 साल बाद क्यों आए ?
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नई दिल्ली: भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजे के तौर पर 7400 करोड़ रुपए नहीं दिए जाएंगे. सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल के नेतृत्व वाली संविधान पीठ ने आज यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (UCC) की उत्तराधिकारी फर्मों को बड़ी राहत देते हुए केंद्र सरकार की क्यूरेटिव याचिका को ठुकरा दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार को इस मामले में पहले आना चाहिए था न कि 30 साल के बाद.

दरअसल, केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करते हुए पीड़ितों को और अधिक मुआवजा देने के लिए फर्मों से अतिरिक्त 7 हजार 400 करोड़ रुपए की देने की मांग की थी. शीर्ष अदालत के फैसले के बाद अबडाऊ कैमिकल्स के साथ समझौता वापस नहीं खुलेगा. जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके महेश्वर की बेंच ने भी 12 जनवरी को केंद्र सरकार की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि हम याचिका को स्वीकार करते है तो ‘पेंडोरा बॉक्स’ खुल जाएगा. अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के पास मौजूद 50 करोड़ रुपए का इस्तेमाल लंबित दावों को मुआवजा देने के लिए करे. सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि समझौते को केवल फ्रॉड के आधार पर निरस्त किया जा सकता है. केंद्र सरकार की ओर से समझौते में फ्रॉड को लेकर कोई दलील नहीं दी गई.

फर्मों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने मामले से संबंधित कई षडयंत्र सिद्धांतों का भी हवाला दिया. उन्होंने कहा कि सिद्धांत में यह दावा किया गया था कि तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने समझौते से पहले पेरिस के एक होटल में UCC अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन से मुलाकात की थी और कहा था कि एंडरसन तब तक अपने पद से रिटायर हो चुके थे. केंद्र सरकार की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से अदालत ने सवाल किया था कि सरकार समीक्षा दाखिल किए बगैर क्यूरेटिव पिटीशन कैसे दाखिल कर सकती है.

बता दें कि केंद्र सरकार ने यह याचिका इसलिए दाखिल की थी, क्योंकि इस त्रासदी के पीड़ित, जहरीली गैस रिसाव की वजह से होने वाली बीमारियों के लिए लंबे समय से पर्याप्त मुआवजे और सही उपचार के लिए संघर्ष कर रहे हैं. केंद्र सरकार ने यह याचिका दिसंबर 2010 में दाखिल की थी. 7 जून 2010 को भोपाल की एक कोर्ट ने UCIL के 7 अधिकारियों को 2 साल की सजा सुनाई थी.

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