चंडीगढ़: पंजाब की होशियारपुर कोर्ट में जालसाजी और धोखाधड़ी के मामले में लंबित कार्यवाही पर सुखबीर सिंह बादल, प्रकाश सिंह बादल और दलजीत सिंह चीमा की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की गई थी. इस याचिका पर शीर्ष अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है. इस याचिका में होशियारपुर की कोर्ट की कार्यवाही को चुनौती दी गई थी. मामले की सुनवाई शीर्ष अदालत के न्यायाधीश एम आर शाह और न्यायाधीश सी टी रविकुमार की पीठ ने की.
अदालत ने होशियारपुर के रहने वाले बलवंत सिंह खेड़ा द्वारा दाखिल शिकायत के आधार पर लंबित मामले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि बादल के खिलाफ कोई केस नहीं बनता. ये केस सीधे तौर पर कानून के गलत इस्तेमाल का मसला है. हम लोअर कोर्ट में चल रही कार्यवाही को निरस्त कर रहे है. दरअसल, बलवंत सिंह खेड़ा की तरफ से दाखिल की गई शिकायत में आरोप लगाया गया था कि शिरोमणि अकाली दल (SAD) के दो संविधान हैं. एक संविधान उसने गुरुद्वारों के प्रबंधन के लिए एक पार्टी के रूप में पंजीकृत हासिल करने के लिए गुरुद्वारा चुनाव आयोग (GEC) को सौंपा है.
जबकि दूसरा संविधान उसने भारत के चुनाव आयोग (ECI) को एक सियासी दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए दिया है. ये एक प्रकार की धोखाधड़ी और जालसाजी है. शिकायत के अनुसार, ECI के सामने शिरोमणि अकाली दल ने खुद के धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक पार्टी होने का दावा किया है, जबकि हकीकत में ये एक धार्मिक पार्टी है, जो शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) के लिए चुनाव लड़ती है.
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि अपीलकर्ताओं को IPC के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत केस का सामना करने के लिए बुलाया गया था. हालांकि, अपराधों की कोई भी सामग्री नहीं थी. उच्च न्यायालय को उस कार्यवाही को निरस्त कर देना चाहिए था, जिससे प्रक्रिया का दुरुपयोग होता. हम ट्रायल कोर्ट के समन समेत विवादित आदेश को रद्द करते हैं. अपील स्वीकार की जाती है. हमने पार्टी के संविधान पर कुछ भी व्यक्त नहीं किया है और निर्वाचन आयोग के सामने दिल्ली में लंबित कार्यवाही को प्रभावित नहीं करना चाहिए.
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