लखनऊ: उत्तर प्रदेश में शक्तिवर्धक दवाओं के नाम पर युवा पेट के रोगों का शिकार हो रहे हैं। आयुर्वेदिक दवाओं में भस्म के स्थान पर राख तथा चूर्ण में पिसी हुई सामान्य पत्तियां पाई गई हैं। यह खुलासा आयुर्वेद विभाग की राजकीय औषधि परीक्षण प्रयोगशाला में तमाम जिलों से आए नमूनों में हुआ है। अब आयुर्वेद निदेशक ने सभी क्षेत्रीय आयुर्वेदिक तथा यूनानी अफसरों को दवाओं की जांच के लिए अभियान चलाने का निर्देश दिया है।
राज्य भर में अप्रैल 2018 से मार्च 2022 तक आयुर्वेद विभाग की राजकीय औषधि परीक्षण प्रयोगशाला में 192 नमूनें भेजे गए। इसमें 11 जांच योग्य नहीं न होने पर लौटा दिए गए जबकि जिला स्तर से अधिकृत पत्र नहीं होने के कारण 11 को लंबित कर दिया गया। दो नमूनें रिजेक्ट हो गए। बाकी 170 नमूनों में केवल 40 गुणवत्तायुक्त पाए गए। सूत्रों के अनुसार, गुणवत्ताविहीन पाए जाने वाली दवाओं में अधिकतर शक्तिवर्धक दवाएं हैं। इसमें भस्म में राख प्राप्त हुई है। उसमें कोई पौष्टिक तत्व नहीं थे। इसी प्रकार चूर्ण में भी संबंधित दवा पैकेट पर दर्ज तत्व नहीं थे। चूर्ण में पिसी हुई पत्तियां पाई गई हैं। इसी ओर सीरप में केवल सीरा पाया गया है। दर्द निवारक दवाओं में साधारण तेल व कपूर मिला हुआ था। यही स्थिति अन्य दवाओं की भी है।
विशेष बात यह है कि अधोमानक पाई गईं अधिकांश दवाएं राज्य के अलग-अलग शहरों में चलने वाले ग्रामोद्योग की हैं। कुछ दवाएं पंजाब निर्मित भी हैं। कुछ दवाएं झांसी तथा ग्वालियर में बनने वाली आयुर्वेद दवा कंपनी के भी हैं। लैब प्रभारी ने सभी अधोमानक दवाओं के बारे में आयुर्वेद निदेशालय के साथ संबंधित जिले के क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अफसर को चिट्ठी भेजी है। जो दवाएं अधोमानक पाई गई हैं, उनके निर्माता को नोटिस भेजा गया है। भविष्य में ऐसी दिक्कत न आए, इसके लिए सभी शहरों में विभागीय अफसर तहकीकात कर रहे हैं। अब दवा निर्माण के लिए लाइसेंस प्रणाली में परिवर्तन किया गया है। निर्माण इकाई में एक डॉक्टर और तीन टेक्निकल स्टॉफ रखना अनिवार्य कर दिया गया है। 5 वर्षों में संबंधित दवा की गुड मैनिफेस्टो प्रैक्टिसेज करानी होगी। ऐसे में अधोमानक दवाएं बाजार में नहीं आएंगी।
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