पटना: देशभर में इस समय चुनाव की बयार चल रही है, इसी साल के अंत में 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसमे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम का नाम शामिल है। वहीं, अगले साल 2024 में लोकसभा चुनाव हैं, जिसमे सत्ताधारी भाजपा को पटखनी देने के लिए 26 विपक्षी दलों ने I.N.D.I.A. गठबंधन बनाया है। वहीं, अब चुनावों को देखते हुए अपने-अपने वोट बैंक को खुश करने की कोशिशें भी शुरू हो चुकी हैं, जिसमे अल्पसंख्यकों पर जमकर पैसों की बौछार हो रही है।
इसी क्रम में बिहार की RJD-JDU सरकार ने एक योजना शुरू की है, जो अल्पसंख्यकों को कारोबार करने के लिए 10 लाख रुपए का लोन देती है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि, अल्पसंख्यकों को इन 10 लाख में से केवल 5 लाख रुपए ही चुकाने होंगे, बाकी के 5 लाख बिहार सरकार, टैक्स भरने वाले लोगों के पैसों में से भरेगी। हालाँकि, बताया जा रहा है कि राज्य की 80 फीसद आबादी को इसका लाभ नहीं मिलेगा, केवल राज्य के 20 फीसद अल्पसंख्यक ही इस मलाईदार योजना के अधिकारी होंगे। नितीश कुमार सरकार ने इस योजना को ‘मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक उद्यमी योजना’ (MAUY) नाम दिया है। बता दें कि, 2011 जनगणना के अनुसार, बिहार में हिन्दू आबादी 82.69 फीसद है, जिनके लिए यह योजना नहीं है।
बिहार में मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक उद्यमी योजना के तहत 10 लाख कर्ज़ा लो 5 लाख तुम भरो 5 लाख बिहार सरकार भरेगी, मगर टैक्स मंदिर के ऊपर लगाया जाएगा।
— SNJ_111 (@SNJ_111) September 26, 2023
बिहार सरकार का अलग ही फरमान है। pic.twitter.com/hN36y8pndQ
अब बात करें अल्पसंख्यकों की तो, अल्पसंख्यकों में सबसे बड़ी आबादी मुस्लिम समुदाय की है (1.76 करोड़ यानी 16.87 फीसद), इसके बाद ईसाई आते हैं, जो की महज 1.29 लाख हैं, फिर सिख, बौद्ध और जैन का नंबर है, जिनकी आबादी महज कुछ हज़ारों में हैं। इन सभी के लिए बिहार सरकार की ये ‘मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक उद्यमी योजना’ (MAUY) है, जिसमे 10 लाख का कर्ज लेकर केवल 5 लाख ही लौटना है। हालाँकि, कुछ विरोधियों द्वारा इसे बिहार सरकार की तुष्टिकरण की राजनीति भी बता रहे हैं, जो वोट बैंक को खुश करने के लिए लाइ गई है। उल्लेखनीय है कि, बिहार सरकार में साझेदार राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का मुख्य वोट बैंक मुस्लिम यादव (MY फैक्टर) ही माना जाता है, वहीं भाजपा से अलग होकर अब सीएम नितीश कुमार भी मुस्लिम समुदाय को रिझाने में लगे हुए हैं। इससे पहले उन्होंने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को एकमुश्त 25 हजार रुपए मदद देने का ऐलान किया था। कुछ लोग ये भी सवाल उठा रहे हैं कि, यदि बिहार सरकार की मंशा केवल बेरोज़गारों को रोज़गार देने की थी, या गरीबों की मदद करने की थी, तो आर्थिक आधार पर नीति लागू करना था, धार्मिक आधार पर क्यों की गई ? क्या सभी अल्पसंख्यक गरीब और बेरोज़गार हैं और बाकी के 80 फीसद लोग अमीर और संपन्न ?
कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने भी शुरू की ऐसी ही योजना:-
बता दें कि, कर्नाटक में कांग्रेस ने इसी साल हुए चुनाव में प्रचंड जीत दर्ज की थी। इसके बाद राज्य के मुस्लिम नेताओं ने पार्टी से मांग करते हुए कहा था कि, कर्नाटक में मुस्लिम समुदाय ने कांग्रेस को एकतरफा वोट दिया है और उसकी जीत में अहम भूमिका निभाई है, अब समय है कि, पार्टी भी उसका इनाम दे। जिसके बाद सिद्धारमैया सरकार ने ताबड़तोड़ फैसले लेते हुए सबसे पहले धर्मान्तरण विरोधी कानून को रद्द किया, जिसे भाजपा सरकार ने बनाया था। बता दें कि, यह योजना धोखे से, लालच देकर, डरा-धमकाकर या अन्य अवैध तरीके से लोगों का धर्मान्तरण किए जाने के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता था। इसे भी कर्नाटक सरकार की तुष्टिकरण की राजनीति कहा गया। इसके बाद कांग्रेस सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए 'स्वावलंबी सारथी योजना' (Karnataka Swawalambi Sarathi Scheme) शुरू की है। इसके तहत कांग्रेस सरकार ऑटो रिक्शा और टैक्सी आदि वाहन खरीदने पर 50 प्रतिशत की सब्सिडी और लोन की सुविधा प्रदान करती है। यानी, इसमें भी आधा पैसा आपको भरना है, बाकी का आधा कर्नाटक सरकार भरेगी। इसमें अधिकतम 3 लाख की सब्सिडी देने का प्रावधान है। इसके लिए अनिवार्य शर्तों में ये सबसे ऊपर है कि, आवेदक को अल्पसंख्यक समुदाय का होना चाहिए। इसके साथ ही कर्नाटक की कांग्रेस सरकार, अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों के लिए "अरिवु" शिक्षा ऋण योजना शुरू की है, जिसके तहत 50000 से लेकर 3 लाख का लोन दिया जा रहा है।
Congress, to fund its freebies,
— Tejasvi Surya (@Tejasvi_Surya) September 8, 2023
1. Is increasing guidance value by 30%,
2. Has doubled electricity charges,
3. Hiked excise duty, milk prices, road tax & also plans to extract 5% cess.
Now, Karnataka's middle class will fund a 'religion targeted scheme', specifically designed… pic.twitter.com/LjOM9jaUrm
बता दें कि, कर्नाटक की कांग्रेस सरकार की यह योजना सभी अल्पसंख्यकों के लिए है, लेकिन बहुसंख्यक हिन्दुओं के लिए नहीं। कर्नाटक सरकार का एक आधिकारिक दस्तावेज के अनुसार, कर्नाटक के कुल अल्पसंख्यकों में 82 फीसद आबादी मुस्लिमों की है, उसके बाद ईसाईयों का नंबर आता है, जिनकी जनसँख्या 12 फीसद है। फिर 4.60 फीसद जैन हैं, इसके बाद सिख, बौद्ध, पारसी हैं, लेकिन उन तीनों की कुल आबादी 1.5 फीसद भी नहीं है। ऐसे में इन योजनाओं का सर्वाधिक लाभ मुस्लिम समुदाय को ही मिलेगा, भाजपा ने इसी पर सवाल उठाया है और सरकार को टीपू सुल्तान सरकार करार दिया है। वहीं, कर्नाटक के पशुपालन मंत्री के वेंकटेश कुछ दिन पहले राज्य में लागू 'गौहत्या विरोधी कानून' को लेकर कह चुके हैं कि, 'जब भैंस काटी जा सकती है, तो गाय क्यों नहीं ?' उन्होंने कहा था कि, 'हम इस कानून की समीक्षा करेंगे, और फिर फैसला लेंगे।' अगर कांग्रेस, गौहत्या कानून हटाकर गौवध की छूट देती है, तो फिर एक बार उसपर तुष्टिकरण के आरोप लगेंगे, क्योंकि सवाल यही उठेगा कि, जिस राज्य में 80 फीसद आबादी गाय को पूजती है, उस राज्य में गाय काटने की छूट देकर पार्टी किसे खुश करना चाहती है ? और क्या उन 80 फीसद आबादी की आस्थाओं का पार्टी के लिए कोई महत्व नहीं ? बता दें कि, इससे पहले गौहत्या बंद करने का विरोध करते हुए कांग्रेस के नेता केरल में बीच सड़क पर गाय काटकर खा चुके हैं, ऐसे में यदि पार्टी कर्नाटक में भी इसकी अनुमति दे देती है, तो आश्चर्य न होगा, आखिर चुनाव आने वाले हैं।
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