सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा का कार्यकाल 2 अक्टूबर 2018 को समाप्त हो गया था, उनकी जगह रंजन गोगोई नए चीफ जस्टिस नियुक्त कर दिए गए थे। अपने 13 माह के कार्यकाल में जस्टिस मिश्रा ने कई ऐतिहासिक फैसले दिए, हालांकि उन्हें कई स्तर पर विरोध से भी जूझना पड़ा। उनके विरुद्ध महाभियोग लाने की कोशिश की गई और कई जजों ने भी उनका विरोध किया।
3 अक्टूबर 1953 को जन्मे बतौर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा मीडिया के प्रति भावुक रहे। उन्होंने मीडिया की आजादी पर अंकुश के प्रयासों को परवान नहीं चढ़ने दिया। कई अवसर पर उन्होंने यह स्पष्ट किया कि पत्रकारों को अभिव्यक्ति की आजादी दी जानी चाहिए। बिहार के एक पूर्व विधायक की याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्होंने बोला था कि रिपोर्टिंग में कुछ गलती हो सकती है, लेकिन इसे हमेशा के लिए पकड़कर नहीं रख सकते। पत्रकारों को अभिव्यक्ति की आजादी की अनुमति देना चाहिए। दरअसल, याचिकाकर्ता पूर्व विधायक का मानना था कि संबंधित मीडिया ने अवैध तरीके से भूमि आवंटन की खबर दिखाई जो कि गलत थी और इसलिए चैनल पर आपराधिक मानहानि का केस चलाया जाना चाहिए, दरअसल चीफ जस्टिस ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए याचिका रद्द कर दी।
जस्टिस मिश्रा समय-समय पर मीडिया को समझाइश भी देते रहे। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि मीडिया को ज्यादा जिम्मेदार बनने की आवश्यकता है। खासकर जय शाह मानहानि केस की सुनवाई के बीच उन्होंने स्पष्ट तौर पर बोला कि आजादी का आशय कुछ भी लिखने से नहीं होना चाहिए। दीपक मिश्रा ने कहा था ‘हम प्रेस की आवाज को नहीं दबा रहे हैं, लेकिन कभी-कभी पत्रकार कुछ ऐसी बातें लिखते हैं जो पूर्ण रूप से अदालत की अवमानना होती हैं। कुछ उच्च पदों पर बैठे पत्रकार कुछ भी लिख सकते हैं, क्या यह वाकई पत्रकारिता है?' मैं हमेशा से ही प्रेस की आजादी का पक्षधर रहा हूं, लेकिन किसी के बारे में कुछ भी बोल देना और कुछ भी लिख देना यह गलत है, इसकी भी एक सीमा होती है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ये नहीं सोच सकता कि वो रातों रात पोप बन सकता है।’
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