भाजपा की बुनियाद रखने वाले नेताओं में अटल जी और आडवाणी का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है.इन दोनों के बिना भाजपा की कल्पना भी नहीं की जा सकती है.1951 से राजनीति में सक्रिय ऐसे दीर्घ अनुभवी वयोवृद्ध राजनेता लालकृष्ण आडवाणी का आज जन्म दिन है. इस मौके पर इनके राजनीतिक संघर्ष और उतार -चढ़ाव से भरे जीवन पर एक नज़र डालते हैं.
उल्लेखनीय है कि 8 नवंबर 1927 को अविभाजित भारत के कराची शहर में व्यापारी किशन चंद आडवाणी के यहाँ माता ज्ञानी देवी की कोख से जन्मे लालकृष्ण आडवाणी का परिवार विभाजन के बाद मुंबई में आकर बस गया. कालांतर में इन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री ली.1965 में कमला देवी से विवाह करने वाले आडवाणी जी की विचारधारा आरम्भ से हिन्दू वादी रही.इसीलिए वे 1942 में आरएसएस से जुड़ गए.जिसमें उन्होंने कुशल संगठक बनकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया.
1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने संघ के साथ जन संघ की स्थापना की तो आडवाणी जी भी इससे जुड़ गए. समय के साथ विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए एलके ने 1957 में दिल्ली जनसंघ के अध्यक्ष बने. 1970 में पहली बार राज्य सभा सदस्य बने.आपातकाल के बाद जनता पार्टी की बनी मोरारजी की सरकार में वे सूचना प्रसारण मंत्री बने .
लेकिन बाद में 6अप्रैल 1980 को मुंबई अधिवेशन में भारतीय जनता पार्टी के नाम से नया दल बनाया गया.अटल जी अध्यक्ष बने. राम जन्म भूमि आंदोलन में आडवाणी की प्रमुख भूमिका रही.उन्होंने कई रथ यात्रा भी निकाली जिनमे राम रथ यात्रा, जनादेश यात्रा और स्वर्ण जयंती रथ यात्रा शामिल है . बाद में 1998 की अटल सरकार में वे गृह मंत्री भी रहे.वहीँ एनडीए के 2004 के कार्यकाल में आडवाणी उप प्रधान मंत्री भी रहे.
दिग्गज और दूरदर्शी नेता होने के बावजूद आडवाणी ने 2005 में कराची दौरे पर मोहम्मद अली जिन्ना की मजार पर जाकर उसे धर्म निरपेक्ष नेता बता दिया.यह बात आरएसएस के गले नहीं उतरी .अंततः आडवाणी को विपक्ष के नेता का पद छोड़ना पड़ा . बाद में उन्हें 2009 में पीएम पद का दावेदार भी बनाया, लेकिन सत्ता में कांग्रेस आ गई.मनमोहन सिंह दुबारा पीएम बन गए.
यहीं से इनका राजनीतिक पराभव का दौर शुरू हो गया. 2014 के आम चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी की प्रबल दावेदारी से आडवाणी ने नाराज होकर भाजपा के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया लेकिन पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इसे मान्य नहीं किया और उनके अनुभव का लाभ पार्टी को देने की बात कही . उधर संघ के अलावा बीजेपी ने भी मोदी का साथ दिया और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज की.नरेंद्र मोदी पीएम बने और आडवाणी की यह हसरत फिर अधूरी रह गई .हालात यह हो गए कि उन्हें भाजपा संसदीय बोर्ड से हटाकर बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में शामिल कर दिया गया.तब से भाजपा का यह भीष्म पितामह राजनीतिक उपेक्षा का शिकार होकर राजनीतिक वनवास सा जीवन जी रहा है .
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