भाजपा-RSS-मोदी से लड़ना ठीक था, लेकिन 'भारतीय राज्य' से लड़कर क्या हासिल करना चाहते हैं राहुल गांधी?

भाजपा-RSS-मोदी से लड़ना ठीक था, लेकिन 'भारतीय राज्य' से लड़कर क्या हासिल करना चाहते हैं राहुल गांधी?
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नई दिल्ली: कांग्रेस के प्रधानमंत्री उम्मीदवार और लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी एक बार फिर अपने बयान के कारण विवादों के घेरे में आ गए हैं। दरअसल, कांग्रेस के नए मुख्यालय 'इंदिरा भवन' में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कह दिया था कि उनकी लड़ाई केवल भाजपा और RSS से नहीं, बल्कि 'इंडियन स्टेट' से भी है। ध्यान दीजिएगा, आज तक कभी भी राहुल गांधी के बयान में ये नहीं आया कि, उनकी या उनकी पार्टी की सरकारों की लड़ाई खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (ISIS) से है, लेकिन आज उनके मुंह से 'इंडियन स्टेट' यानी 'भारतीय राज्य' या 'भारतीय व्यवस्था' से लड़ाई होने की बात निकल गई। 

 

यह बयान न केवल उनकी पार्टी पर बल्कि भारतीय लोकतंत्र और संविधान की भावना पर भी सवाल खड़ा करता है। ‘इंडियन स्टेट’ के खिलाफ लड़ाई की बात कहकर राहुल गांधी ने एक ऐसा मुद्दा उठा दिया है, जो न केवल राजनीतिक गलियारों में बल्कि आम जनता के बीच भी चर्चा का विषय बन गया है। इस बयान ने बीजेपी को कांग्रेस पर तीखा हमला करने का मौका दे दिया। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राहुल गांधी पर आरोप लगाया कि उनका यह बयान उनकी विभाजनकारी मानसिकता को उजागर करता है। नड्डा ने लिखा, "राहुल गांधी ने वह बात कह दी, जो उनका असली सपना है। यह बयान कांग्रेस की उस मानसिकता का परिचायक है, जो भारत को खंडित और कमजोर करना चाहती है।" 

हालाँकि, यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने ऐसा विवादित बयान दिया हो। इससे पहले भी वे विदेश दौरों पर भारत को ‘एक राष्ट्र’ मानने से इंकार कर चुके हैं। उनका यह कहना कि भारत ‘राज्यों का एक समूह है’ और अमेरिका की तरह एक संघीय ढांचे में बसा हुआ है। कई लोगों का कहना है कि, राहुल का ये बयान, उनकी भारतीय संस्कृति और इतिहास की गहरी समझ की कमी को दर्शाता है। भारतवासी हजारों वर्षों से हिमालय से कन्याकुमारी तक इस भूमि को अपनी मातृभूमि मानते आए हैं। भले ही राजनीतिक संरचना समय-समय पर बदली हो, लेकिन सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से यह देश हमेशा से एक रहा है। 

 

राहुल गांधी का बयान उन ऐतिहासिक तथ्यों से भी टकराता है, जो भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक एकता को प्रदर्शित करते हैं। 1947 के विभाजन के बावजूद, सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारत की 562 रियासतों का एकीकरण करके इसे एक मजबूत राष्ट्र के रूप में स्थापित किया था। पटेल के इस अद्वितीय प्रयास ने भारत की अखंडता और सार्वभौमिकता को नई ऊंचाई दी। यह कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस के नेताओं ने भी उस समय भारत को एक राष्ट्र के रूप में स्वीकार किया था। 

लेकिन राहुल गांधी का यह बयान ‘इंडियन स्टेट’ को अपना शत्रु बताने की कोशिश करता है। क्या यह उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर हमला करने की रणनीति है, या फिर यह उनकी गहरी वैचारिक असमंजस का संकेत? यह सवाल न केवल उनकी पार्टी के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है। भारत के संदर्भ में यह समझना जरूरी है कि यहां की सांस्कृतिक विविधता ही इसकी एकता का आधार रही है। उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक भारत एक ऐसा देश है, जिसकी पहचान उसकी सांस्कृतिक धरोहर में छिपी है। राहुल गांधी द्वारा भारत को ‘राज्यों के समूह’ के रूप में पेश करना इस देश की गहरी ऐतिहासिक जड़ों को नकारने जैसा है। 

यह बयान उन अलगाववादी आंदोलनों को भी अप्रत्यक्ष रूप से बल दे सकता है, जो पहले से ही तमिलनाडु, कश्मीर और उत्तर-पूर्व में विद्यमान हैं। तमिलनाडु में अलग देश की मांग उठ चुकी है। उत्तर-पूर्व के राज्यों में कई समूह दशकों से अलगाववादी विचारधारा को लेकर संघर्षरत हैं। कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद केंद्र सरकार ने एक राष्ट्र की अवधारणा को मजबूत किया है, लेकिन ऐसे बयानों से वहां के कट्टरपंथी गुटों को नई हवा मिल सकती है। 

भारत के राष्ट्रवाद की अवधारणा केवल 1947 में जन्मी नहीं है। यह हजारों वर्षों की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता का परिणाम है। ऋग्वेद से लेकर महाभारत तक, और मौर्य से लेकर गुप्त साम्राज्य तक, भारत एक अखंड भूभाग के रूप में देखा गया है। यहां भले ही अलग-अलग राजाओं ने शासन किया हो, लेकिन भारतीय सभ्यता और संस्कृति हमेशा एकजुट रही है। राहुल गांधी के बयान से यह तर्क निकलता दिखाई देता है, जैसे कि भारत केवल 1947 के बाद से एक राष्ट्र बना, उससे पहले कुछ था ही नहीं। ये बयान न केवल ऐतिहासिक तथ्यों को नजरअंदाज करता है, बल्कि उनकी पार्टी के उन नेताओं के बलिदानों का भी अपमान करता है, जिन्होंने इस देश की स्वतंत्रता और अखंडता के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया। 

आज जब देश व्यापर से लेकर अंतरिक्ष तक, नई ऊंचाइयों को छू रहा है, ऐसे में विभाजनकारी विचारधारा को बढ़ावा देना खतरनाक साबित हो सकता है। यह समय भारत की एकता और अखंडता को मजबूत करने का है, न कि उसे चुनौती देने का। राहुल गांधी को अपने बयानों के प्रति जिम्मेदार होना चाहिए। उनकी राजनीति अगर विपक्ष की भूमिका निभाने तक सीमित रहे, तो यह लोकतंत्र के लिए फायदेमंद होगी। लेकिन ‘इंडियन स्टेट’ को निशाना बनाना न केवल उनके राजनीतिक करियर बल्कि उनकी पार्टी के भविष्य के लिए भी हानिकारक हो सकता है।

राहुल गांधी के बयान पर देश की जनता को अब यह तय करना होगा कि वे ऐसी विचारधारा को स्वीकार करते हैं या खारिज। भारत केवल एक भूगोल नहीं, बल्कि एक भावना है, और इस भावना को चुनौती देने वालों को जनता कब तक माफ करेगी? यह समय ही बताएगा। 

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