पितृपक्ष के दौरान बोधगया के धर्मारण्य, मातंग्वापी एवं संगम स्थल सरस्वती वेदी तथा महाबोधि मंदिर में श्राद्ध किया जाता है। जी हाँ और यहाँ श्राद्ध कर्म संपन्न होने के बाद धर्मारण्य परिसर में अवस्थित भगवान विष्णु मंदिर में अपने पूर्वजों, गुरूजनों एवं इष्टजनों के स्वर्ग प्राप्ति के लिए प्रार्थना की। आपको बता दें कि पिंडदानी महाबोधि मंदिर में भी अपने पितरों का श्राद्ध करते है। यहाँ महाबोधि मंदिर पहुंचे पिंडदानी पितरों के लिए श्राद्ध कर्म संपन्न करने के बाद भगवान बुद्ध का दर्शन कर पितरों की मुक्ति के लिए आराधना करते हैं।
जी दरअसल पितृपक्ष महासंगम के पांचवें दिन तृतीया तिथि को बोधगया स्थित विभिन्न पिंडवेदियो पर कर्मकांड का विधान है। वहीँ स्कंद पुराण के अनुसार महाभारत के युद्ध के दौरान जाने अनजाने में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और पश्चाताप के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान किया था। कहा जाता है पितृपक्ष के तृतीया तिथि को यहां गया श्राद्ध के साथ पिंडदान का विधान है, हालाँकि तृतीया तिथि को त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व है। यही कारण है कि आस्थावान सनातन धर्मावलंबी श्रद्धालु प्रेत बाधा से मुक्ति हेतु पिंडदान कर अष्ट कमल आकार के कूप में नारियल छोड़कर अपनी आस्था को पूर्ण करते हैं।
इसी के साथ मातंग ऋषि का तपोस्थली मातंगवापी वेदी पर पिंडदान तर्पण और मातंगी सरोवर के दर्शन का विशेष महत्व मना जाता है। जिसका उल्लेख अग्नि पुराण में भी है। मातंगवापी परिसर में स्थित मातंगेश्वर शिव पर पिंड सामग्री को छोड़ पिंडदानी अपने कर्मकांड का इति श्री कर आगे बढ़ते हैं। इसी के साथ मान्यता है कि महाबोधि मंदिर में पिंडदान के बाद मंदिर के गर्भगृह में भगवान बुद्ध और मंदिर के पीछे स्थित बोधि वृक्ष का नमन जरूरी है। सब लोग पिंडदान के बाद प्रणाम ज़रूर करते हैं।
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